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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-१.] [157 तिण्हं परमाणुपोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए, तम्हा तिणि परमाणुयोग्गला एगयनो साहणंति; ते भिज्जमाणा दुहा वि तिहा वि कज्जति, दुहा कज्जमाणा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो दुपदेसिए खंधे भवति, तिहा कज्जमाणा तिष्णि परमाणुपोग्गला भवंति। एवं जाव चत्तारि पंच परमाणुपोग्गला एगयो साहन्नति, साहनित्ता खंवत्ताए कज्जति, खंधे वि य णं से प्रसासते सया समियं उचिज्जइ य अवचिज्जइ य / पुब्धि मासा प्रभा सा, भासिज्जमाणी मासा भासा, भासासमयवीतिरकंतं च णं भासिता भासा प्रभासा; जा सा पुचि भासा प्रभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयवोतिक्कंतं च णं भासिता भासा प्रभासा, सा कि भासतो भासा प्रभासनो भासा? भासो गं सा भासा, नो खलु सा अमासनो भासा। पुब्बि किरिया अदुक्खा जहा भासा तहा भाणितव्वा किरिया वि जाव करणतो गं सा दुक्खा, नो खलु सा प्रकरणमो दुक्खा, सेवं वत्तन्वं सिया। किच्चं दुक्खं, फुसं दुक्खं, कज्जमाणकडं दुक्खं कटु कटु पाण-भूत-जीव-सत्ता बेदणं वेदेतीति वत्तव्वं लिया। [1 प्र.] भगवन् ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि'जो चल रहा है, वह अचलित है—चला नहीं कहलाता और यावत्-जो निर्जीर्ण हो रहा है, वह निर्जीर्ण नहीं कहलाता।' __ 'दो परमाणुपुद्गल एक साथ नहीं चिपकते।' दो परमाणुपुद्गल एक साथ क्यों नहीं चिपकते? इसका कारण यह है कि दो परमाणुपुद्गलों में चिपकनापन (स्निग्धता) नहीं होती इसलिए दो परमाणुपुद्गल एक साथ नहीं चिपकते।' 'तीन परमाणुपुद्गल एक दूसरे से चिपक जाते हैं / ' तीन परमाणुपुदगल परस्पर क्यों चिपक जाते हैं ? इसका कारण यह है कि तीन परमाणुपुद्गलों में स्निग्धता (चिकनाहट) होती है। इसलिए तीन परमाणु-पुद्गल आपस में चिपक जाते हैं। यदि तीन परमाणु-पुद्गलों का भेदन (भाग) किया जाए तो दो भाग भी हो सकते हैं, एवं तीन भाग भी हो सकते हैं। अगर तीन परमाणु-पुद्गलों के दो भाग किये जाएँ तो एक तरफ डेढ़ परमाणु होता है और दूसरी तरफ भी डेढ़ परमाणु होता है / यदि तीन परमाणुपुद्गलों के तीन भाग किये जाएँ तो एक-एक करके तीन परमाणु अलग-अलग हो जाते है / इसी प्रकार यावत् चार परमाणु-पुद्गलों के विषय में समझना चाहिए।' 'पाँच परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं और वे दुःखरूप (कर्मरूप) में परिणत होते हैं / वह दुःख (कर्म) भी शाश्वत है, और सदा सम्यक प्रकार से उपचय को प्राप्त होता है और अपचय को प्राप्त होता है।' 'बोलने से पहले की जो भाषा (भाषा के पुद्गल) है, वह भाषा है। बोलते समय की भाषा अभाषा है और बोलने का समय व्यतीत हो जाने के बाद की भाषा, भाषा है।' [प्र.] यह जो बोलने से पहले की भाषा, भाषा है और बोलते समय को भाषा, अभाषा है तथा बोलने के समय के बाद की भाषा, भाषा है; सो क्या बोलते हुए पुरुष की भाषा है या न बोलते हुए पुरुष की भाषा है ?' [उ.] 'न बोलते हुए पुरुष की वह भाषा है, बोलते हुए पुरुष की वह भाषा नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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