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________________ 696] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 17. एवं जाव वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियदेविस्थीमो / [17] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की देवियों के विषय में भी इसी प्रकार (कहना चाहिए।) विवेचन-नारक से वैमानिक तक तथा उनकी स्त्रियों और सिद्धों में कृतयुग्मादि राशिपरिमाण-निरूपण-प्रस्तुत 13 सूत्रों (सू. 5 से 17 तक) में नैरयिक से लेकर वैमानिक तक तथा उनकी स्त्रियों और सिद्धों में कृतयुग्मादिराशि का प्रतिपादन किया गया है। फलितार्थ-प्रश्न का प्राशय यह है कि नारक से वैमानिक तक तथा उनकी स्त्रियाँ क्या कृतयुग्मादि रूप हैं ? अर्थात् इनका परिमाण क्या कृतयुग्म-रूप है या अन्य प्रकार का है ? इसके उत्तर का प्राशय यह है कि जघन्यपद और उत्कृष्टपद, ये दोनों पद निश्चित संख्यारूप होते हैं / इसी से ये दोनों पद नियतसंख्या वाले नारकादि में ही सम्भव हैं: अनियत संख्या वाले वनस्पतिकायिकों एवं सिद्धों में नहीं / इसका एक कारण यह भी है कि नारकादिकों में जघन्यपद और उत्कृष्ट पद कालान्तर में सम्भव है; जब कि वनस्पतिकायिक जीवों के विषय में कालान्तर में भी जघन्य और उत्कृष्ट पद संभवित नहीं होता। अत: निश्चित संख्या वाले नैरयिक प्रादि की राशि का परिमाण इन पारिभाषिक शब्दों में करते हुए कहते हैं कि जब वे अत्यन्त अल्प होते हैं, तब कृतयुग्म होते हैं, जब उत्कृष्ट होते हैं तब व्योज होते हैं तथा मध्यमपद में वे चारों राशि वाले होते हैं। इसी प्रकार तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय, मनुष्य, भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव-ये सब जघन्यपद में कृतयुग्मराशि-परिमित हैं और उत्कृष्ट पद में त्योजराशि-परिमित हैं। मध्यमपद में कदाचित् कृतयुग्म, कदाचित् योज, कदाचित् द्वापरयुग्म और कदाचित् कल्योज हैं। द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पृथ्वी-अप तेजो-वायु रूप जीव जघन्यपद में कृतयुग्म रूप एवं उत्कृष्टपद में द्वापरयुग्मपरिमित हैं, मध्यमपद में चारों राशि वाले होते है। वनस्पतिकाय की संख्या निश्चित न होने से उनमें जघन्य और उत्कृष्ट पद घटित नहीं हो सकता, क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव अनन्त यद्यपि जितने जीव परम्परा से मोक्ष में चले जाते हैं, उतने जीव उनमें से घटते ही हैं, तथापि उसका अनन्तत्व कायम रहने से वह राशि अनिश्चित संख्यारूप मानी जाती है। बनस्पतिकाय के समान सिद्धजीवों में भी जघन्यपद और उत्कृष्ट पद सम्भव नहीं होता, क्योंकि सिद्ध जीवों की संख्या बढ़ती जाती है, तथा अनन्त होने से उनका परिमाण अनियत रहता है। ___नारक सभी नपुंसक होने से उनमें स्त्रियाँ सम्भव नहीं हैं / असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक की स्त्रियाँ (देवियाँ), तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ, मनुष्यस्त्रियाँ तथा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की स्त्रियाँ जघन्य और उत्कृष्ट दोनों पदों में कृतयुग्म-परिमित हैं। मध्यमपद में कृतयुग्म आदि चारों राशियों वाली हैं।' अन्धकवह्नि जीवों में अल्पबहुत्व परिमाण-निरूपण 18. जावतिया णं भंते ! बरा अंधगवण्हिणो जीवा तावतिया परा अंधगहिणो जीवा ? 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 745 (ख) भगवती. भाग 13, (प्रमेयचन्द्रिका टीका) पृ. 22-23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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