________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 2] [ 677 गंगदत्त और कार्तिक श्रेष्ठी-हस्तिनापुर में कार्तिक सेठ तो बाद में श्रेष्ठी हुए, उनसे बहुत पहले से गंगदत्त श्रेष्ठी बने हुए थे। इन दोनों में प्रायः ईयाभाव रहता था। दोनों ने तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के पास दीक्षा अंगीकार की थी। किन्तु श्रमणत्व की साधना में तारतम्य होने से गंगदत्त का जीव सातवें महाशुक्र देवलोक में उत्पन्न हुआ, जबकि कार्तिक सेठ का जीव शकेन्द्र बना / ' ___ कठिन शब्दार्थ--उववायसभाए-उपपात सभा (देवों के उत्पन्न होने के सभागार) में / देवसयणिज्जसि-देवशय्या में (जहाँ देव उत्पन्न होते हैं)। पाउणइ—पालन करता है। पहुणोववन्ने तत्काल उत्पन्न हुआ है। // अठारहवां शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त / 1. भगवतीसूत्र भा. 6, (पं. घेवरचन्दजी), पृ. 2674 2. वही, पृ. 2673 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org