________________ तेरसमो उद्देसओ : 'नाग' तेरहवाँ उद्देशक : नागकुमार (सम्बन्धी वक्तव्यता) नागकुमारों में समाहारादि सप्त द्वारों को तथा लेश्या एवं लेश्या की अपेक्षा से अल्पबहुत्व-प्ररूपणा 1. नागकुमारा णं भंते ! सम्वे समाहारा ? जहा सोलसमसए दीवकुमारुद्द सए (स० 16 उ० 11 सु० 1.4) तहेव निरवसेसं भाणियध्वं जाव इड्डो। से भंते ! सेवं भंते ! ज // सत्तरसमे सए : तेरसमो उद्देसओ समत्तो // 17-13 // [1 प्र.] भगवन् ! क्या सभी नागकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [1 उ.] गौतम ! जैसे सोलहवें शतक के (11 वें) द्वीपकुमार-उद्देशक में (सूत्र 1-4 में) कहा है, उसी प्रकार सब कथन, यावत् ऋद्धि तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं। // सत्तरहवां शतक : तेरहवाँ उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org