________________ 640 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 3 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव तेजोलेश्या वाले हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं, और उनसे कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं। 4, एएसि णं भंते ! एगिदियाणं कण्हलेस० इड्डो ? जहेव दीवकुमाराणं (स० 16 उ० 11 सु० 4) / सेवं भंते ! सेव भंते ! 0 / सत्तरसमे सए : बारसमो उद्द सो समत्तो / / 17.12 // 4 प्र. भगवन ! इन कृष्णलेश्या वालों से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रियों (तक) में कौन अल्प ऋद्धि वाला है, और कौन महाऋद्धि वाला है ? |4 उ., गौतम ! (सोलहवें शतक के 11 वे उद्देशक (सू. 4 में) जिस प्रकार द्वीपकुमारों की ऋद्धि कही गई है, उसी प्रकार यहाँ एकेन्द्रियों में भी कहना चाहिए / हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र 3-4 में पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीवों में लेश्या, तथा उक्त लेश्याओं वाले एकेन्द्रियों के अल्प बहुत्व आदि की तथा लेश्या की तथा अल्पऋद्धि-महद्धिक की समानताअसमानता का प्रतिपादन अतिदेशपूर्वक किया गया है / // सत्तरहवां शतक : बारहवां उद्देशक समाप्त // 1. (क) भगवती, श. 16, उ.१सू, 4 में देखिये। (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2641 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org