________________ चउत्थो उद्देसओ : 'किरिया' चतुर्थ उद्देशक : क्रिया (प्रादि से सम्बन्धित वक्तव्यता) जीव और चौबीस दण्डकों में प्राणातिपातादि पांच क्रियानों की प्ररूपणा 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासो[१] उस काल उस समय में राजगृह नगर में यावत् श्रीगौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा-- 2. अस्थि णं भंते ! जीवाणं पाणातिवाएणं किरिया कज्जति ? हंता, अस्थि / [2 प्र.] भगवन् ! क्या जीव प्राणातिपातक्रिया करते हैं ? [2 उ.] हाँ, गौतम ! करते हैं / 3. सा भंते ! कि पुट्ठा कज्जति, अपुट्ठा कज्जति ? गोयमा ! पुट्ठा कज्जति, नो अपुट्ठा कज्जति / एवं जहा पढमसए छठ्ठद्देसए (स० 1 उ० 6 सु०७-११) जाब नो अणाणुपुब्बिकडा ति बत्तब्बं सिया। [3 प्र.] भगवन् ! वह (प्राणातिपातक्रिया) स्पृष्ट (ग्रात्मा के द्वारा स्पर्श करके) की जाती है या अस्पृष्ट ? 3 उ.] गौतम ! वह स्पृष्ट की जाती है, अस्पृष्ट नहीं की जाती; इत्यादि समग्र वक्तव्यता प्रथम शतक के छठे उद्देशक (सू. 7-11) में कथित वक्तव्यता के अनुसार, यावत्--'वह क्रिया अनुक्रम से की जाती है, बिना अनुक्रम के नहीं', (यहाँ तक) कहना चाहिए। 4. एवं जाव वेमाणियाणं; नवरं जीवाणं एगिदियाण य निवाघाएणं छदिस; वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसि, सिय पंचदिसि ; सेसाणं नियम छदिसि / [4] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए / विशेषता यह है कि (सामान्य) जीव और एकेन्द्रिय निर्याघात की अपेक्षा से, छह दिशा से आए हुए और व्याघात की अपेक्षा से कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से और कदाचित् पांच दिशाओं से आए हुए कर्म करते हैं / शेष सभी जीव छह दिशा से पाए हुए कर्म करते हैं। 5. अस्थि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जति ? हंता, अत्थि। [5 प्र.] भगवन् ! क्या जीव मृषावाद क्रिया करते हैं ? [5 उ.] हाँ, गौतम ! करते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org