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________________ सोलहवां शतक : उद्देशक 9] [591 कहना चाहिए।) तथा उपपात से लेकर यावत् आत्मरक्षक तक सभी बातें पूर्ववत् कहनी चाहिए / विशेषता यह है कि (बलि-वैरोचनेन्द्र की) स्थिति सागरोपम से कुछ अधिक की कही गई है। शेष सभी बातें पूर्ववत् जाननी चाहिए। यावत् 'वैरोचनेन्द्र बलि है, वैरोचनेन्द्र बलि है' यहाँ तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन-चमरेन्द्र और बलीन्द्र की सधर्मा सभा में प्रायः समानता-जिस प्रकार दूसरे शतक के। पाठवें उद्देशक में चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी बलीन्द्र की सुधर्मा सभा के विषय में कहना चाहिए। वहाँ जिस प्रकार तिगिञ्छकट नामक उत्पात पर्वत का परिमाण कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी रुचकेन्द्र नामक उत्पातपर्वत का परिमाण कहना चाहिए / तिगिञ्छकट पर्वत पर स्थित प्रासादावतंसकों का जो परिमाण कहा गया है, वही परि रुचकेन्द्र उत्पातपर्वत स्थित प्रासादावतंसकों का है। प्रासादावतंसकों के मध्य भाग में बलीन्द्र के सिंहासन तथा उसके परिवार के सिंहासनों का वर्णन भी चमरेन्द्र से सम्बन्धित सिंहासनों के समान जानना शाहिए। विशेष अन्तर यह है कि बलीन्द्र के सामानिक देवों के सिंहासन साठ हजार हैं, जब कि चमरेन्द्र के सामानिक देवों के सिंहासन 64 हजार हैं, तथा प्रात्मरक्षक देवों के आसन प्रत्येक के सामानिकों के सिंहासनों से चौगुने हैं। जिस प्रकार तिगिञ्छकट में तिगिञ्छ रत्नों को प्रभा बाले उत्पलादि होने से उसका अन्वर्थक नाम तिगिञ्छकूट है। उसी प्रकार रुचकेन्द्र में रुचकेन्द्र रत्नों की प्रभा वाले उत्पलादि होने के कारण उसका अन्वर्थक नाम रुचकेन्द्रकट कहा गया है। बलिचंचा नगरी (राजधानी) का परिमाण कहने के पश्चात् उसके प्राकार, द्वार, उपकारिकालयन, (द्वार के ऊपर के गृह) प्रासादावतंसक, सुधर्मा सभा, सिद्धायतन ( चैत्य-भवन) उपपातसभा, ह्रद, अभिषेकसभा, आलंकारिकसभा और व्यवसायसभा आदि का स्वरूप और प्रमाण बलिपीठ के वर्णन तक कहना चाहिए।' // सोलहवां शतक : नौवाँ उद्देशक समाप्त / 1. (क) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 718-719 . (ख) भगवती. (प्रागम प्र. स, ब्यावर) खण्ड 1 श. 2 उ.८ पृ. 235, 237 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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