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________________ 582] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [3 प्र.] भगवन् ! क्या लोक के दक्षिणो चरमान्त में जीव हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [3 उ.] गौतम ! (इस विषय में) पूर्वोक्त प्रकार से सब कहना चाहिए / 4. एवं पच्चस्थिमिल्ले वि, उत्तरिल्ले वि। [4] इसी प्रकार पश्चिमी चरमान्त और उत्तरी चरमान्त के विषय में भी कहना चाहिए / 5. लोगस्स णं भंते ! उरिल्ले चरिमंते कि जीवा० पुच्छा। गोयमा ! नो जीवा, जीवदेसा वि जाव अजोवपएसा वि / जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेसा य अणिदियदेसा य, प्रहवा एगेदियदेसा य अणिदियदेसा य बंदियस्स य देसे, अहवा एगिदियदेसा य अणि दियदेसा य बेइंदियाण य देसा / एवं मजिल्लविरहितो जाय पंचिदियाणं / 'जे जीवप्पएसा ते नियम एगिदियपदेसा य अणिदियप्पएसा य, अहवा एगिदियपदेसा य अणिदियपदेसा य बेइंदियस्स य पदेसा, अहवा एगिदियपदेसा य अणिदियपएसा य बेइंदियाण य पदेसा / एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचिदियाणं / अजीवा जहा दसमसए तमाए (स० 10 उ० 1 सु० 17) तहेव निरवसेसं / [5 प्र.] भगवन् ! लोक के उपरिम चरमान्त में जीव हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [5 उ.] गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं / जो जीव के देश हैं, वे नियमत: एकेन्द्रियों के देश और अनिन्द्रियों के देश हैं। अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रिय का एक देश है, अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रियों के देश हैं। इस प्रकार बीच के भंग को छोड़ कर द्विकसंयोगी सभी भंग यावत् पंचेन्द्रिय तक कहना चाहिए। यहाँ जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं। अयवा एकेन्द्रियों के प्रदेश, अनिन्द्रियों के प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय के प्रदेश हैं / अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के प्रदेश तथा द्वीन्द्रियों के प्रदेश हैं। इस प्रकार प्रथम भंग के अतिरिक्त शेष सभी भंग यावत् पंचेन्द्रियों तक कहना चाहिए / दशवे शतक (के प्रथम उद्देशक सू. 17) में कथित तमादिशा की वक्तव्यता के अनुसार यहाँ पर अजीवों की वक्तव्यता कहनी चाहिए। 6. लोगस्स णं भंते ! हेट्ठिल्ले चरिमंते कि जीवा० पुच्छा। गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि जाव अजीवप्पएसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिदियदेसा, अहवा एगिदियदेसा य बेदियस्स य देसे, अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियाण य देसा। एवं मज्झिल्लविरहियो जाव अणिदियाणं, पदेसा प्रादिल्लविरहिया सव्वेसि जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते तहेव / अजीवा जहा उवरिल्ले चरिमंते तहेव / [6 प्र.] भगवन् ! क्या लोक के अधस्तन (नीचे के) चरमान्त में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् / [6 उ.] गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं। जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रिय का एक देश है / अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रियों के देश हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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