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________________ [व्याख्याप्रप्तिसूत्र भगवान महावीर को छद्मस्थावस्था की अन्तिम रात्रि में दिखाई दिये 10 स्वप्न और उनका फल 20. समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध, तं जहा - एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ताणं पडिबुद्ध 1 / एगं च णं महं सुविकलपक्खगं पुंसकोइलं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध 2 / एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुसकोइलगं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध 3 / एगं च णं महं दामदुर्ग सव्वरयणामयं सुविणे पालित्ताणं पडिबुद्ध 4 / एगं च णं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध 5 / एमं च णं महं पउमसरं सम्वतो समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध 6 / एगं च णं महं सागरं उम्मीवोयीसहस्सकलियं भुयाहि तिण्णं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध 7 / एगं च णं महं दिणकरं तेयसा जलंतं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध 8 / एगं च णं महं हरिवेरुलियवण्णाभेणं नियगेणं अंतेणं माणुसुत्तर पव्वयं सव्वतो समंता प्रावेढियं परिवेढियं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध 9 / एगं च णं महं मंदरे पब्बए . मंदरचूलियाए उरि सोहासणवरगयं अप्पाणं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध 10 / [20] श्रमण भगवान् महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देख कर जागत हए / वे इस प्रकार हैं-(१) एक महान घोर (भयंकर) और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया, ऐसा स्वप्न देखकर जागृत हुए। (2) श्वेत पाँखों वाले एक महान् पुस्कोकिल (नरजाति के कोयल) को स्वप्न में देखकर जागृत हुए / (3) चित्र-विचित्र पंखों वाले पुस्कोकिल को स्वप्न में देख कर जागृत हुए। (4) स्वप्न में सर्वरत्नमय एक महान् मालायुगल को देख कर जागृत हुए। (5) स्वप्न में श्वेतवर्ण के एक महान् गोवर्ग को देख कर प्रतिबद्ध हए। (6) चारों ओर से पूष्पित एक महान पद्मसरोवर को स्वप्न में देखकर जागत हुए। (7) सहस्रों तरंगों (लहरों) और कल्लोलों से कलित (सुशोभित) एक महासागर को अपनी भजाओं से तिरे,ऐसा स्वप्न देख कर जागत हए।(८) अपने तेज से जाज्वल्यमान एक महान दिवाकर (सूर्य) को स्वप्न में देख कर जागृत हुए। (6) एक महान् (विशाल) मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्य मणि के समान अपने अन्तर भाग (प्रान्तों) से चारों ओर से प्रावेष्टित-परिवेष्टित देख कर जागत हुए। (10) महान् मन्दर (सुमेरु पर्वत की मन्दर-चलिका पर श्रेष्ठ सिहासन पर बैठे हुए अपनेआपको देखकर जागृत हुए / 21. जणं समणे भगवं महावीरे एगं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सविणे पराजियं पा० जाव पडिबुद्ध तं गं समणेणं भगवता महावीरेणं मोहणिज्जे कम्मे मूलओ उग्धातिए 1 / जंणं समणे भगवं महावीरे एगं महं सुविकल जाव पडिबुद्ध तं गं समणे भगवं महावीरे सुक्कज्झाणोवगए विहरति 2 / जंणं समणे भगवं महावीरे एगं महं चित्तविचित्त जाव पडिबुद्ध तं गं समणे भगवं महावीरे विचित्तं ससमय-परसमइयं दुवालसंग गणिपिडगं प्राघवेति पनवेति परवेति दंसेति निदंसेति उवदंसेति, तं जहा-आयारं सूयगडं जाव दिट्टिवायं 3 / जं गं समणे भगवं महावीरे एगं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्ध तं णं समणे भगवं महावीरे दुविहं धम्मं पनवेति, तं जहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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