________________ 540] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र इन्द्रिय और योग की अपेक्षा से भी अधिकरणी और अधिकरण-विषयक कथन शरीर को तरह ही समझना चाहिए।' यहाँ यह ध्यान रखना है, जिस जीव में जितनी एवं जो इन्द्रियां अथवा जितने योग हों, उतने एवं वे ही यथायोग्य कहने चाहिए / यहाँ प्रत्येक प्रश्न पहले सामान्य जीवसमूह की अपेक्षा से और फिर दण्डकों के क्रम से किय / / सोलहवां शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त / 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. 2, (मूलपाठ-टिप्पण युक्त) प्र. 746-747 2. वही, पृ. 746-747 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org