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________________ पन्द्रहवां शतक] [523 [142] वह वहाँ से यावत् निकल कर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, यावत् श्रामण्य की विराधना करके ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होगा। 143. से णं ततो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गह लभिहिति, केवलं बोहि बुझिहिति जाव अविराहियसामण्णे कालमाले कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति / [143] वह वहाँ से च्यव कर मनुष्य-शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा / यावत् चारित्र (श्रामण्य) की विराधना किये बिना (आराधक होकर) काल के अवसर में काल करके सौधर्म कल्प में देव के रूप में उत्पन्न होगा। 144. से शं ततोहितो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विगह लमिहिति, केवलं बोहि बुज्झिहिति / तत्थ वि णं अविराहियसामग्णे कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति। [144] उसके पश्चात् वह वहाँ से च्यव कर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि भी प्राप्त करेगा। वहाँ भी वह चारित्र की विराधना किये बिना काल के समय में काल करके ईशान देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होगा। 145. से णं तओहितो अशंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लमिहिति, केवलं बोहिं बुज्सिहिति / तत्थ विणं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सणंकुमार कप्पे देवत्ताए उपज्जिहिति / [145] वह वहां से व्यव कर मनुष्य-शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि प्राप्त करेगा। वहाँ भी वह चारित्र की विराधना किये बिना काल के अबसर में काल करके सनत्कुमार कल्प में देवरूप में उत्पन्न होगा। 146. से णं ततोहितो एवं जहा सणंकुमारे तहा बंभलोए महासुक्के प्राणए पारणे / [146] वहाँ से च्यव कर, जिस प्रकार सनत्कुमार देवलोक में उत्पन्न होने का कहा, उसी प्रकार ब्रह्मलोक, महाशुक्र, पानत और पारण देवलोकों में उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिए। 147. से गं ततो जाव अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सव्वटुसिद्ध महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति / [147] वहां से च्यव कर वह मनुष्य होगा, यावत् चारित्र को विराधना किये बिना काल के अवसर में काल करके सर्वार्थ सिद्ध महाविमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा। विवेचन-प्रस्तुत तेरह सूत्रों (सू. 135 से 147 तक) में सुमंगल अनगार द्वारा रथ-सारथिप्रश्वसहित गोशालक के जीव विमलवाहन को भस्म किये जाने से लेकर भविष्य में सात नरक, खेचर, भुजपरिसर्प, उर:परिसर्प, स्थलचर चतुष्पद, जलचर, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय तथा वनस्पतिकाय, वायुकाय, तेजस्काय, अप्काय एवं पृथ्वीकायिक जीवों में अनेक लाख बार उत्पन्न होने की, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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