________________ 522] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विन्ध्य-पर्वत के पादमूल (तलहटी) में बेभेल नामक सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा / वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके मातापिता उचित शुल्क (द्रव्य) और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप में अर्पण करेंगे / वह उसको भार्या होगी। वह (अपने पति द्वारा) इष्ट, कान्त, यावत् अनुमत, बहुमूल्य सामान के पिटारे के समान, तेल की कुप्पी के समान अत्यन्त सुरक्षित, वस्त्र की पेटी के समान सुसंगृहीत (निरुपद्रव स्थान में रखी हुई), रत्न के पिटारे के समान सुरक्षित तथा शीत, उष्ण यावत् परीषह उपसर्ग उसे स्पर्श न करें, इस दृष्टि से अत्यन्त संगोषित होगी। वह ब्राह्मण-पुत्री गर्भवती होगी और एक दिन किसी समय अपने ससुराल से पीहर ले जाई जातो हुई मार्ग में दावाग्नि की ज्वाला से पीड़ित होकर काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के अग्निकुमार देवों में देव रूप से उत्पन्न होगी। 139. से णं ततोहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभिहिति, माणुसं विगह लभित्ता केवलं बोधि बुज्झिहिति, केवलं बोधि बज्झित्ता मुंडे भवित्ता प्रगाराओ अणगारियं पन्बइहिति / तत्थ वि णं विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा दहिणिल्लेसु असुरकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववजिहिति / [136] वहाँ से च्यव कर वह मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा / फिर वह केवलबोधि (सम्पनत्व) प्राप्त करेगा। तत्पश्चात मण्डित होकर अगारबास का परित्याग करके अनगार धर्म को प्राप्त करेगा। किन्तु वहाँ श्रामण्य (चारित्र) की विराधना करके काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा। 140. से णं ततोहितो जाव उम्वद्वित्ता माणुसं विग्गहं तं चैव तत्थ वि गं विराहियसामण्णे कालमासे जाव किच्चा दाहिणिल्लेसु नागकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उवधज्जिहिति / 140] वहाँ से च्यव कर वह मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि आदि पूर्ववत् सब वर्णन जानना, यावत् प्रवजित होकर चारित्र की विराधना करके काल के समय में काल करके दक्षिणनिकाय के नागकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा। 141. से पं ततोहितो अणंतरं० एवं एएणं अभिलावेणं दाहिणिल्लेसु सुवष्णकुमारेसु, दाहिणिल्लेसु विज्जुकुमारेसु, एवं अग्गिकुमारवज्जं जाव दाहिणिल्लेसु थणियकुमारेसु० / [141] वहाँ से च्यव कर वह मनुष्यशरीर प्राप्त करेगा, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् / यावत् इसी प्रकार के पूर्वोक्त अभिलाप के अनुसार कहना। (विशेष यह है कि श्रामण्य विराधना करके वह क्रमश:) दक्षिणनिकाय के सुपर्णकुमार देवों में उत्पन्न होगा, फिर (इसी प्रकार) दक्षिणनिकाय के विद्युत्कुमार देवों में उत्पन्न होगा, इसी प्रकार अग्निकुमार देवों को छोड़ कर यावत् दक्षिणनिकाय के स्तनितकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा। 142. से णं ततो जाव उध्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति जाव विराहियसामण्णे जोतिसिएसु देवेसु उववज्जिहिति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org