________________ 490] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (2) हाथ से मसला हुम्रा, (3) सूर्य के ताप से तपा हुप्रा और (4) शिला से गिरा हुआ / यह (चतुर्विध) पानक है। 91. से किं तं अपाणए ? अपाणए चविहे पन्नत्ते, तं जहा-थालपाणए तयापाणए सिबलिपाणए सुद्धपाणए / [91 प्र.] अपानक क्या है ? [91 उ.] अपानक चार प्रकार का कहा गया है। यथा—(१) स्थाल का पानी (2) वृक्षादि की छाल का पानी, (3) सिम्बली (मटर आदि को फलो) का पानी और (4) शुद्ध पानी। 92. से कि तं थालपाणए ? थालपाणए जे णं दाथालगं वा दावारगं वा दाकुभगं वा दाकलसं वा सोयलगं उल्लगं हत्थेहि परामुसइ, न य पाणियं पियाइ से तं थालपाणए / [62 प्र.] वह स्थाल-पानक क्या है ? [92 उ.] स्थाल-पानक वह है, जो पानी से भीगा हुमा स्थाल (थाल) हो, पानी से भीगा हुआ वारक (करवा, सकोरा या मिट्टी का छोटा बर्तन) हो, पानी से भीगा हुअा बड़ा घड़ा (मटका) हो अथवा पानी से भीगा हुमा कलश (छोटा घड़ा) हो, या पानी से भीगा हुमा मिट्टी का बर्तन (शीतलक) हो जिसे हाथों से स्पर्श किया जाए, किन्तु पानी पीया न जाए, यह स्थाल-पानक कहा गया है। 93. से कि तं तयापाणए ? तयापाणए जे गं अंबं वा अंबाडगं वा जहा पयोगपए जाव' बोरं वा तिदुरुयं वा तरुणगं आमगं आसगंसि आवोलेति वा पवोलेति वा, न य पाणियं पियइ से तं तयापाणए / [63 प्र.] त्वचा-पानक किस प्रकार का होता है ? [93 उ.] त्वचा-पानक (वृक्षादि की छाल का पानी) वह है, जो पाम्र, अम्बाडग इत्यादि प्रज्ञापना सूत्र के सोलहवें प्रयोग पद में कहे अनुसार, यावत् बेर, तिन्दुरुक (टेंबरू) पर्यन्त (वृक्षफल) हो, तथा जो तरुण (नया-ताजा) एवं अपक्व (कच्चा) हो, (उसकी छाल को) मुख में रख कर थोड़ा चूसे या विशेष रूप से चूरो, परन्तु उसका पानी न पीए / यह त्वचा-पानक कहलाता है / 94. से कि तं सिबलिपाणए ? सिबलिपाणए जे णं कलसिंगलियं वा मुग्गसिंगलियं वा माससंगलियं वा सिबलिसिंगलियं वा तरुणियं प्रामियं आसगंलि आवीलेति वा पवोलेति वा, ण य पाणियं पियइ से तं सिबलिपाणए। [64 प्र.] वह सिम्बली-पानक किस प्रकार का होता है ? [94 उ.] सिम्बली (वृक्ष-विशेष की फली) का पानक वह है, जो कलाय (ग्वार या मसूर) 1. जाव शब्द सूचक पाठ-भब्वं वा फणसं वा दालिम वा इत्यादि / —पण्णवणासुत्तं भा. 1, सू. 1112, पृ. 273 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org