________________ 488] [ब्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गर्म निःश्वास डालता हुमा / अव कंडूयमाणे-गर्दन के पीछे के भाग (घाटी) को खुजलाता हुआ। पुर्याल पटफोडेमाण --कूल्हे या जांध को ठोकता हुआ। विणिद्ध पमाण-हिलाता हुआ। अभि खणं बारबार / कोट्टमाण-कूटता या पीटता हुआ। अंबकूणग-हत्थगए-आम्रफल हाथ में लेकर / मट्टियापाणएणं आयंचणि-उदएणं-मिट्टी मिले हुए ठंडे पानी (जिसका दूसरा नाम पातञ्चनिकोदक है) से गायाई-शरीर के अंगोपांग / ' भगवत्प्ररूपित गोशालक को तेजोलेश्या की शक्ति 87. 'प्रज्जो' ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमतेत्ता एवं क्यासि-जावतिए णं अज्जो ! गोसालेणं मंखलियुत्तेणं ममं वहाए सरोरगंसि तेये निसठे से णं अलाहि पज्जते सोलसण्हं जणवयाणं, तं जहा---अंगाणं वंगाणं मगहाणं मलयाणं मालवगाणं अच्छाणं बच्छाणं कोट्ठाणं पाढाणं लाढाणं व जाणं मोलोणं कासीण कोसलाणं अवाहाणं सुभुत्तराणं घाताए वहाए उच्छादणताए भासीकरणताए। तदन्तर श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों को 'हे पार्यो !' इस प्रकार सम्बोधित करके कहा-हे आर्यो ! मंलिपुत्र गोशालक ने मेरा वध करने के लिए अपने शरीर में से जितनी तेजोलेश्या (तेज) निकाली थी, वह (निम्नोक्त) सोलह जनपदों (देशों) का घात करने, वध करने, उच्छेदन करने और भस्म करने में पूरी तरह पर्याप्त (समर्थ) थो। वे सोलह जनपद ये हैं--(१) अंग (वर्तमान में प्रासाम), (2) बंग (बंगाल), (3) मगध (4) मलयदेश (मलयालम प्रान्त) (5) मालवदेश, (वर्तमान में मध्यप्रदेश), (6) अच्छ, (7) वत्सदेश, (8) कौत्सदेश, (9) पाट, (10) लाढदेश (11) बज्रदेश, (12) मौली, (13) काशी, (14) कौशल, (15) अबध और (16) सुम्भुक्तर / विवेचन--प्रस्तुत सूत्र (87) में गोशालक द्वारा भगवान को मारने के लिए निकाली गई तेजोलेश्या की प्रचण्ड शक्ति का निरूपण किया गया है / गोशालक द्वारा दुरुपयोग के कारण वह शक्ति उसी के लिए मारक बनी।। कछ जनपदों के वर्तमान सम्भावित नाम-अंग-असम, आसाम / बंग-बंगाल / मगधबिहारान्तर्गल राजगृह प्रादि / मलय-को चीन और मलयालम प्रान्त / मालव-वर्तमान में मध्यप्रदेश, मध्य प्रान्त / अच्छ—कच्छ का ही दूसरा नाम हो, अथवा सम्भव है अच्छनेरा अादि जनपद हो। वच्छ-वत्स देश, कौशाम्बीनगरी जिसकी राजधानी थी। कोच्छ-कोद-कौत्स या कोष्ठसंभव है काठमांट (नेपाल की राजधानी) आदि हो / अथवा पठानकोट, सियालकोट आदि में से कोई हो / पाट–संभव है पाटलीपुत्र का ही दूसरा नाम हो। लाट-वर्तमान में सिंहभूम या संथालपरगना, जहाँ आदिवासीबहुल जनता है। वज्ज-वहर-वर्तमान में वीरभूम ही प्राचीन वज्रभूमि / काशी, कौशल (अयोध्या) आदि प्रसिद्ध हैं। 1. (क) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 684 (ख) भगवती. प्रमेय चन्द्रिका टीका, भा. 11, पृ. 688-689 2. पाइअसहमहष्णवो (द्वितीयसंस्करण 1963) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org