________________ 472] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चयित्ता उरिल्ले माणसे संजहे देवे उववज्जति / से णं तत्थ दिवाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ, विहरिता ताओ देवलोगानो आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चयित्ता पढमे सनिगम्भे जीवे पच्चायाति / से गं तओहितो प्रणतरं उध्वट्टित्ता मझिल्ले माणसे संजहे देवे उववज्जइ / से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आयु० जाव चइत्ता दोच्चे सन्निगन्भे जोवे पच्चायाति / से णं ततोहितो अणंतरं उध्वट्टित्ता हेछिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ / से णं तत्थ दिवाई जाव चइत्ता तच्चे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाति / से णं तओहितो जाव उध्वट्टित्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजू हे देवे उववज्जति / से णं तत्थ दिव्वाई भोग० जाव चइत्ता चतुत्थे सनिगम्भे जोवे पच्चायाति / से णं तओहितो अगंतरं उव्यट्टित्ता मझिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जति / से णं तत्थ दिवाई भोग० जाव चइत्ता पंचमे सण्णिगभे जीवे पच्चायाति / से गं तमोहितो अणंतरं उच्चट्टित्ता हेदिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ / से णं तत्थ दिन्वाई भोग० जाव चइत्ता छट्टसग्णिगबभे जीवे पच्चायाति / से णं तओहितो अणंतरं उवट्टित्ता बंभलोगे नाम से कप्पे पन्नत्ते पाईणपडीणायते उदीणदाहिणवित्थिपणे जहा ठाणपदे जाव' पंच वडेंसया पन्नत्ता, तं नहा-असोगवडेंसए जावर पडिरूवा / से णं तत्थ देवे उपवज्जति / से गं तत्थ दस सागरोवमाई दिवाई भोग० जाव चइत्ता सत्तमे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाति। से पं तत्थ नवण्हं मासाणं बहुपडियुग्णाणं अट्ठमाण जाव वोतिकताणं सुकुमालगभद्दलए मिदुकुडलकुचियकेसए मट्टगंडयलकण्णपीढए देवकुमारसप्पभए दारए पयाति से णं अहं कासवा!। "तए णं अहं आउसो ! कासवा ! कोमारियपन्नज्जाए कोमारएणं बंभचेरवासेणं अविद्धकन्नए चेव संखाणं पडिलभामि, संखाणं पडिलभित्ता इमे सत्त पउट्टपरिहारे परिहरामि, तंजहा-- एणेज्जगस्स 1 मल्लरामगस्स 2 मंडियस्स 3 रोहस्स 4 भारद्दाइस्स 5 अजुणगस्स गोतमपुत्तस्स 6 गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स 7 / ___ "तत्थ गंजे से पढमे पउट्टपरिहारे से गं रायगिहस्स नगरस्स बहिया मंडियच्छिसि चेतियंसि उदायिस्स कुडियायणियस्स सरोरगं विपजहामि, उदा० सरीरगं विप्पजहित्ता एणज्जगस्त सरीरगं अणुष्पविसामि / एणेज्जगस्स सरीरगं अणुप्पविसित्ता बावीसं वासाई पढमं पडट्टपरिहारं परिहामि / ___ "तत्य गंजे से दोच्चे पउपरिहारे से णं उद्दडपुरस्स नगरस्स बहिया चंदोयरणसि चेतियंसि एगेज्जगस्स सरीरगं विघ्पजहामि, एणज्जगस्स सरीरगं विप्पजहिता मल्लरामगस्स सरीरगं अनुपविसामि, मल्लरामगस्स सरीरगं अणुप्पविसित्ता एक्कवीसं वासाई दोच्चं पउट्टपरिहार परिहरामि। --.-. 1. देखिये पण्णवणासुतं भा. 1, सू. 201, पृ. 73 (महावीर जैन विद्यालय प्रकाशन) 2. 'जाव' पद सूचक पाठ-.-'सत्तिवण्णवडेंसए चंपगव.सए चूपवडेंसए माझे य बंभलोयवसए इत्यादि / - भगवती. अ. व., पत्र 667 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org