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________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 5. तेणं कालेणं तेणं समयेणं गोसाले मखलिपुत्ते चतुबीसवासपरियाए हालाहलाए कुभकारोए कुंभारावणंसि आजीवियसंघसंपरिवुडे आजीवियसमयेणं प्रप्पागं भावेमाणे विहरति / [5] उस काल उस समय में चौवीस वर्ष की दीक्षापर्याय वाला मंखलिपुत्र गोशालक, हालाहला कुम्भारिन की कुम्भका रापण (मिट्टी के बर्तनों को दुकान) में आजीविक संघ से परिवृत होकर आजीविक सिद्धान्त से अपना प्रात्मा को भावित करता हुअा विचरण करता था / विवेचन–प्रस्तुत चार सूत्रों में आजीविकसम्प्रदायाचार्य मंखलीपुत्र गोशालक के चरित के सन्दर्भ में श्रावस्ती नगरी की आजीविक सम्प्रदाय की परम उपासिका हालाहला कुभारिन का संक्षिप्त परिचय देते हुए श्रावस्तीस्थित उसकी दूकान में गोशालक के आजीविक संघसहित निवास करने का वर्णन किया गया है।' गोशालक का छह दिशाचरों को अष्टांगमहानिमित्तशास्त्र का उपदेश एवं सर्वज्ञादि अपलाप 6. तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अन्नदा कदायि इमे छदिसाचरा अंतियं पादुम्भविस्था, तं जहा--सोणे कणंदे कणियारे अच्छिद्दे अग्गिवेसायणे अज्जुणे गोमायु (गोयम) पुत्ते / [6] तदनन्तर किसी दिन उस मलिपुत्र गोशालक के पास ये छह दिशाचर पाए (प्रादुर्भूत हुए) / यथा—(१) शोण, (2) कनन्द, (3) कणिकार, (4) अच्छिद्र, (5) अग्निर्वैश्यायन और (6) गौतम (गोमायु)--पुत्र अर्जुन / 7. तए णं ते छद्दिसाचरा अढविहं पुत्वगयं मग्गदसमं सएहि सहि मतिदंसह निज्जूहंति, स० निहित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं उवट्ठाईसु / [7] तत्पश्चात् उन छह दिशाचरों ने पूर्वश्रुत में कथित अष्टांग निमित्त, (नौवें गीत-) मार्ग तथा दसवें (नृत्य-) मार्ग को अपने-अपने मति-दर्शनों से पूर्वश्रुत में से उद्धत किया, फिर मंलिपुत्र गोशालक के पास उपस्थित (शिष्यभाव से दीक्षित) हुए। 8. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अटुंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेण सव्वेसि पाणाणं सवेसि भूयाणं सन्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं इमाई छ प्रणतिक्कमणिज्जाई वागरणाई वागरेति, तं जहा—लाभं अलाभं सुहं दुक्खं जीवितं मरणं तहा / [8] तदनन्तर वह मंलिपुत्र गोशालक, उस अष्टांग महानिमित्त के किसी उपदेश (उल्लोकमात्र) द्वारा सर्व प्राणों, सभी भूतों, समस्त जीवों और सभी सत्त्वों के लिए इन छह अनतिक्रमणीय (जो अन्यथा--असत्य न हों, ऐसी) बातों के विषय में उत्तर देने लगा। वे छह बातें ये हैं---(१) लाभ, (2) अलाभ, (3) सुख, (4) दुःख, (5) जीवन और (6) मरण / 1. वियाहपण्णतिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पण) भा. 2, 5, 689 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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