________________ 424] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र महद्धिक वैक्रियशक्तिसम्पन्न देव की भाषासहस्रभाषणशक्ति 12. [1] देवे णं भंते ! महिड्डीए जाव महेसक्खे रूवसहस्सं विउवित्ता पभू भासासहस्सं भासित्तए ? हंता, पभू। ___ [12-1 प्र.] भगवन् ! मद्धिक यावत् महासुखी देव क्या हजार रूपों की विकुर्वणा करके, हजार भाषाएँ बोलने में समर्थ है ? / [12-1 उ.] हाँ, (गौतम ! ) वह समर्थ है / [2] सा गं भंते ! कि एगा भासा, भासासहस्सं ? गोयमा! एगा गं सा भासा, णो खलु तं भासासहस्सं / [12-2 प्र.] भगवन् ! वह एक भाषा है या हजार भाषाएँ हैं ? [12-2 उ.] गौतम ! वह एक भाषा है, हजार भाषाएँ नहीं / विवेचन –हजार भाषाएँ बोलने में समर्थ , किन्तु एक समय में भाष्यमाण एक भाषामहद्धिक यावत् महासुखी देव हजार रूपों की विकुर्वणा करके हजार भाषाएँ बोल सकता है, किन्तु एक समय वह जो किसी प्रकार की सत्यादि भाषा बोलता है, वह एक हो भाषा होती है, क्योंकि एक जीवत्व और एक उपयोग होने से वह एक भाषा कहलाती है, हजार भाषा नहीं।' सूर्य का अन्वर्थ तथा उनकी प्रभादि के शुभत्व को प्ररूपणा 13. तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे अचिरुग्गतं बालसूरियं जासुमणाकुसुमपुंजप्पास लोहीतगं पासति, पासित्ता जातसड्ढे जाव समुष्पन्नकोउहल्ले जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता जाव नमंसित्ता जाव एवं वयासी-किमिदं भंते ! सूरिए, किमिदं भंते ! सूरियस्स अट्ठ ? गोयना ! सुभे सूरिए, सुभे सूरियस्स अट्ठ। [13 प्र.| उस काल, उस समय में भगवान गौतम स्वामी ने तत्काल उदित हुए जासुमन नामक वृक्ष के फूलों (जपाकुसुम) के पुंज के समान लाल (रक्त) बालसूर्य को देखा / सूर्य को देखकर गौतमस्वामो को श्रद्धा उत्पन्न हुई, यावत् उन्हें कौतूहल उत्पन्न हुअा, फलतः जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके निकट पाए और यावत् उन्हें वन्दन-नमस्कार किया और फिर इस प्रकार पूछा भगवन् ! सूर्य क्या है ? तथा सूर्य का अर्थ क्या है ? [13 उ.] सूर्य शुभ पदार्थ है तथा सूर्य का अर्थ भी शुभ है। 14. किमिदं भंते ! सूरिए, किमिदं भंते ! सूरियस्स पभा ? एवं चेव / 1. (क) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5. पृ. 2358 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 656 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org