________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 8] [411 6. जोतिसस्स णं भंते ! सोहम्मीसाणाण य कप्पाणं केवतियं० पुच्छा / गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणाई जाव' अंतरे पन्नत्ते / [6 प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क विमानों और सौधर्म-ईशानकल्पों का अबाधा-अन्तर कितना कहा गया है ? [6 उ.] गौतम ! इनका अबाधान्तर यावत् असंख्यात योजन कहा गया है / 7. सोहम्मीसाणाणं भंते ! सगकुमार-माहिदाण य केवतियं०? एवं चेव / [7 प्र.] भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प और सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्पों का कितना अबाधान्तर कहा गया है? [7 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत) जानना चाहिए / 8. सणंकुमार-माहिदाणं भंते ! बंभलोगस्स य कप्पस्स केवतियं ? एवं चेव / [8 प्र.] भगवन् ! सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्प और ब्रह्मलोककल्प का अबाधान्तर कितना कहा गया है ? [8 उ.] गौतम ! इनका अबाधान्तर भी पूर्ववत् है। 9. बंभलोगस्स णं भंते ! लंतगस्स य कप्पस्स केवतियं० ? एवं चेव / [6 प्र.] भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प और लान्तककल्प के अबान्धान्तर के विषय में (पूर्ववत्) प्रश्न। [9 उ.] गौतम ! (इन दोनों का अबाधान्तर पूर्ववत्) इसी प्रकार (समझना चाहिए / ) 10. लंतयस्स णं भंते ! महासुक्कस्स य कप्पस्स केवतियं० ? एवं चेव। |10 प्र. भगवन् ! लान्तककल्प और महाशुक्र कल्प का अबाधान्तर कितना है ? [10 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना चाहिए। 1. 'जाव' पद सूचक प्रज्ञापनासूत्रपाठ-"कहि गं भंते ! सोहम्मगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सोहम्मगवेवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्बतस्स दाहिणणं इमीले रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उडढं चंदिम-भूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहणि जोयणसताण बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसतसहस्साई बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोजाकोडोओ उड्ढे दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं सोहम्मे जाम कप्पे पण्णत" श्री महावीरजैनविद्यालयप्रकाशित 'पणवणासून भाग 1' पृ. 70, मू० 197 [1] / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org