________________ 408] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अनुत्तरौपपातिक देव : स्वरूप, कारण और उपपातहेतुककर्म 13. [1] अस्थि णं भंते ! अणुत्तरोववातिया देवा, अगुत्तरोक्वातिया देवा ? हंता, अस्थि / [13-1 प्र. भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव, अनुत्तरौपपातिक होते हैं ? (13-1 उ.] हाँ, गौतम ! होते हैं। [2] से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति 'अणुत्तरोववातिया देवा, अणुत्तरोववातिया देवा' ? गोयमा ! अणुत्तरोववातियाणं देवाणं अणुसरा सद्दा नाव अणुत्तरा फासा, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ अगुत्तरोववातिया देवा, अणुत्तरोववातिया देवा / [13-2 प्र.] भगवन् ! वे अनुत्तरौपपातिक देव क्यों कहलाते हैं ? [13-2 उ.] गौतम ! अनुरोपपातिक देवों को अनुत्तर शब्द, यावत्—(अनुत्तर रूप, अनुत्तर रस, अनुत्तर गन्ध और) अनुत्तर स्पर्श प्राप्त होते हैं, इस कारण, हे गौतम ! अनुत्तरोपपातिक देवों को अनुत्तरौपपातिक देव कहते हैं / 14. अणुत्तरोववातिया णं भंते ! देवा केवतिएणं कम्मावसेसेणं अगुत्तरोववातियदेवताए उक्वन्ना? गोयमा ! जावतियं छट्टभत्तिए समणे निगंथे कम्मं निज्जरेति एवतिएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववातिया देवा अणुत्तरोक्वातियदेवत्ताए उववन्ना। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / // चोद्दसमे सए : सत्तमो उद्देसनो समत्तो // 14.7 / / [14 प्र.] भगवन् ! कितने कर्म शेष रहने पर अनुत्तरौपपातिक देव, अनुत्तरौपपातिक देवरूप में उत्पन्न हुए हैं ? [14 उ.] गौतम ! श्रमणनिर्ग्रन्थ षष्ठ-भक्त (बेले के) तप द्वारा जितने कर्मों को निर्जरा करता है, उतने कर्म शेष रहने पर अनुत्तरौपपातिक-योग्य साधु, अनुत्तरौपपातिक देवरूप में उत्पन्न हे भगवन् यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर गोतमस्वामी, यावत् विचरते हैं। विवेचन प्रस्तुत दो सूत्रों में अनुत्तरौपपातिक देवों के अस्तित्व का समर्थन, उनके अनुत्तरौपपातिक होने का कारण तथा कितने कर्म अवशेष रहने पर अनुतरौपपातिक देवत्व प्राप्त होता है ? इसकी परिचर्चा की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org