________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 6] [397 सहित चक्राकार वाले स्थान में जाते हैं। क्योंकि उनके समक्ष स्पर्श आदि विषयों का उपभोग करना अविरुद्ध है। शकेन्द्र और ईशानेन्द्र वहाँ परिवार सहित नहीं जाते। क्योंकि वे कायप्रवीचारी होने से अपने सामानिकादि परिवार के समक्ष कायपरिचारणा (काया द्वारा विषयोपभोग सेवन) करना लज्जनीय और अनुचित समझते हैं।' __ कठिनशब्दार्थ-मिपडिरूवगं-मि-चक्र के प्रतिरूप-सदृश गोलाकार / बहसमरमणिज्जेअत्यन्त सम और रम्य / उल्लोए-उल्लोक या उल्लोच-उपरितल / अदुजोयणिया-लम्बाई-चौड़ाई में पाठ योजन / सोहासणं विउवह सपरिवार-(सनत्कुमारेन्द्र) स्वपरिवार योग्य आसनों से युक्त सिंहासन को विकुर्वणा करता है / 2 // चौदहवां शतक : छठा उद्देशक समाप्त // 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 646 2. वही, अ. वृत्ति, पत्र 646 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org