________________ प्रथम शतक : उद्देशक-७] [ 127 13. जीवे णं भते ! गभगए समाणे किमाहारमाहारेति ? गोयमा!जं से माता नाणाविहारो रसविगतोओ पाहारमाहारेति तदेक्कदेसेणं प्रोयमाहारेति / [13 प्र. भगवन् ! गर्भ में गया (रहा) हुमा जीव क्या आहार करता है ? [13 उ.j गौतम ! उसकी माता जो नाना प्रकार की (दुग्धादि) रसविकृतियों का आहार करती है; उसके एक भाग के साथ गर्भगत जीव माता के आर्तव का आहार करता है। 14. जोवस्स णं भते ! गमगतस्स समाणस्स अस्थि उच्चारे इ वा पासवणे इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा? णो इगट्ट समट्ठ। से केण?णं? गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे जमाहारेति तं चिणाइ तं सोतिदियत्ताए जाव फासिदियत्ताए अद्वि-अदिमिज-केस-मंसु-रोम-तहत्ताए, से तेण?णं। [14-1 प्र.] भगवन् ! क्या गर्भ में रहे हुए जीव के मल होता है, मूत्र होता है, कफ होता है, नाक का मैल होता है, वमन होता है, पित्त होता है ? [14-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है-गर्भगत जीव के ये सब (मलमूत्रादि) नहीं होते हैं। [14-2 प्र.) भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? [14-2 उ.] हे गौतम ! गर्भ में जाने पर जीव जो प्राहार करता है, जिस आहार का चय करता है, उस आहार को श्रोत्रेन्द्रिय (कान) के रूप में यावत् स्पर्शेन्द्रिय के रूप में तथा हड्डी, मज्जा, केश, दाढ़ी-मूछ, रोम और नखों के रूप में परिणत करता है। इसलिए हे गौतम ! गर्भ में गए हुए जीव के मल-मूत्रादि नहीं होते। 15. जीवे णं मते ! गभगते समाणे पभू मुहेणं कावलियं प्राहारं प्राहारित्तए ? गोयमा ! जो इण? समट्ठ। से केणणं ? गोयमा ! जीवे णं गभगते समाणे सव्वतो आहारेति, सव्वतो परिणामेति, सम्वतो उस्ससति, सब्बतो निस्ससति, अभिक्खणं प्राहारेति, अभिक्खणं परिणामेति, अभिक्खणं उसससति, अभिक्खणं निस्ससति, श्राहच्च प्राहारेति, प्राहच्च परिणामेति, पाहच्च उस्ससति, प्राहच्च नीससति / मातुजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी मातुजीवपडिबद्धा पुत्तजीवं कुडा तम्हा आहारेइ, तम्हा परिणामेति, प्रवरा वि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा चिणाति, तम्हा उचिणाति; से तेण?णं० जाव नो पभू मुहेणं कावलिकं प्राहारं पाहारित्तए / [15-1 प्र. भगवन् ! क्या गर्भ में रहा हुअा जीव मुख से कवलाहार (ग्रासरूप में आहार) करने में समर्थ है ? {15-1 उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है—ऐसा होना सम्भव नहीं है। [15-2 प्र. भगवन् ! यह आप किस कारण से कहते हैं ? [15-2 उ.] गौतम ! गर्भगत जीव सब ओर से (सारे शरीर से) आहार करता है, सारे शरीर से परिणमाता है, सर्वात्मना (सब ओर से) उच्छ वास लेता है, सर्वात्मना निःश्वास लेता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org