SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 126] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [6 उ.] हां, गौतम ! उस महा ऋद्धि वाले देव का यावत् च्यवन (मृत्यु) के पश्चात तिर्यञ्च का प्रायुष्य अथवा मनुष्य का आयुष्य समझना चाहिए। विवेचन देव का च्यवनानन्तर–प्रायुष्यप्रतिसंवेदन-निर्णय-प्रस्तुत सूत्र में देवगति से च्युत होने के बाद तिर्यञ्च या मनुष्य गति के आयुष्य भोग के संबंध में उठाये गए प्रश्न का समाधान है। चूकि देव मर कर देवगति या नरकगति में नहीं जाता, इसलिए तिर्यञ्च या मनुष्य जिस गति में भी जाता है, वहाँ की आयु भोगता है। गर्भगतजीव-सम्बन्धी विचार 10. जीवे णं भंते ! गम्भ वक्कममाणे कि सइंदिए वक्कमति ? अणिदिए वक्कमइ? गोयमा ! सिय सइंदिए वक्कमइ, सिय प्रणिदिए वक्कमइ / से केणणं? गोयमा ! विदियाई पडुच्च अणिदिए वक्कमति, भाविदियाई पडुच्च सइंदिए बक्कमति, से तेण?णं। [10-1 प्र.] भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, क्या इन्द्रियसहित उत्पन्न होता है अथवा इन्द्रियरहित उत्पन्न होता? [10-1 उ.] गौतम ! इन्द्रियसहित भी उत्पन्न होता है, इन्द्रियरहित भी, उत्पन्न होता है। {10-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? [10-2 उ.] गौतम ! द्रव्येन्द्रियों को अपेक्षा वह बिना इन्द्रियों का उत्पन्न होता है और भावेन्द्रियों की अपेक्षा इन्द्रियों सहित उत्पन्न होता है, इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है। 11. जीवे णं भते! गभ वक्कममाणे कि ससरीरी वक्कमइ ? असरीरी वक्कमइ ? गोयमा ! सिय ससरीरी वक्कमति, सिय असरोरी वक्कमति / से केण गं? गोयमा ! पोरालिय-वेउब्धिय-पाहारयाई पडुच्च असरीरी वक्कमति, तेया-कम्माई पडुच्च ससरीरी वक्कमति ; से तेण?णं गोयमा ! [11-1 प्र.] भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जोव, क्या शरीर-सहित उत्पन्न होता है, अथवा शरीररहित उत्पन्न होता है ? [11-1 उ.] मौतम ! शरीरसहित भी उत्पन्न होता है, शरीररहित भी उत्पन्न होता है। [11-2 प्र. भगवन् ! यह आप किस कारण से कहते हैं ? (11-2 उ.] गौतम ! यौदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों की अपेक्षा शरीररहित उत्पन्न होता है तथा तैजस, कार्मण शरीरों की अपेक्षा शरीरसहित उत्पन्न होता है। इस कारण गौलम ! ऐसा कहा है। 12. जीवे णं भते ! गभं वक्कममाणे तपढमताए किमाहारमाहारेति ? गोयमा ! माउनोयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसिट्ठ कलुसं किन्विसं तप्यढमताए पाहारमाहारेति / [12 प्र.] भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होते ही जोव सर्वप्रथम क्या अाहार करता है ? [12 उ.] गौतम ! परस्पर एक दूसरे में मिला हुग्रा माता का आर्तव (रज) और पिता का शुक्र (वीर्य), जो कि कलुष और किल्विष है, जीव गर्भ में उत्पन्न होते ही सर्वप्रथम उसका पाहार करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy