________________ चौदहवां शतक : रद्देशक 3] [375 किइकम्मेइ--कृतिकर्म-वन्दन करना अथवा उनके आदेशानुसार कार्य करना / अब्भुट्ठाणेइअभ्युत्थान-आदरणीय व्यक्ति को देखते ही प्रादर देने के लिए आसन छोड़ कर खड़े हो जाना / अंजलिपग्गहे-दोनों हाथों को जोड़ना, करबद्ध होना / पासणाभिग्गहे आसन लाकर देना और विराजने के लिए आदरपूर्वक कहना / आसणाणुप्पदाणे—पासनाऽनुप्रदान-पासन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा कर बिछाना / एतस्स पच्चुग्गच्छणया पाते हुए (सम्मान्य) पुरुष के सम्मुख जाना / ठियस्स पज्जुवासणया-बैठे हुए आदणीय पुरुष की पर्युपासना करना / गच्छंतस्स पडिसंसाहणया-जब आदरणीय व्यक्ति उठ कर जाने लगे तब कुछ दूर तक उसके पीछे जाना / अल्पधिक-महद्धिक समद्धिक देव-देवियों के मध्य में से व्यतिक्रमनिरूपण 10. अप्पिट्टिए णं भंते ! देवे महिड्डियस्त देवस्त मज्झमझेणं बीतीवएज्जा ? नो तिण? सम8। [10 प्र.] भगवन् ! अल्प ऋद्धि वाला देव, क्या महद्धिक देव के मध्य में हो कर जा सकता है ? [10 उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) शक्य नहीं है / 11. समिड्डिए णं भंते ! देने समिड्डियस्स देवस्स मज्झमज्भेणं बीतीवएज्जा ? जो तिण8 समठ्ठ पमत्तं पुण वीतीवएज्जा। [11 प्र.] भगवन् ! सद्धिक (समान ऋद्धि वाला) देव, सम ऋद्धि वाले देव के मध्य में से होकर जा सकता है ? [11 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; (किन्तु यदि समान ऋद्धि वाला देव) प्रमत्त (प्रसावधान) हो तो (दूसरा समद्धिक देव उसके मध्य में से) जा सकता है। 12. से णं भंते ! कि सत्थेणं अक्कमित्ता पभू, अणक्कमित्ता पभू? गोयमा ! अक्कमित्ता पभू, नो अणक्कमित्ता पभू / [12 प्र.] भगवन् ! मध्य में होकर जाने वाला देव, शस्त्र का प्रहार करके जा सकता है या बिना प्रहार किये ही जा सकता है ? [12 उ.] गौतम ! वह शस्त्राक्रमण करके जा सकता है, बिना शस्त्राक्रमण किये नहीं जा सकता। 13. से णं भंते ! कि पुन्धि सत्थेणं अक्कमित्ता पच्छा बीतीवएज्जा, पुब्धि होतीवतित्ता पच्छा सत्थेणं अक्कमेज्जा? एवं एएणं अभिलावणं जहा दसमसए आतिडीउद्देसए (स० 10 उ० 3 सु०६-१७) तहेव निरवसेसं चत्तारि दंडगा भाणितवा जाव महिड्डीया वेमाणिणी अप्पिड्डियाए वेमाणिणीए / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 637 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5 पृ. 2298 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org