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________________ 328] [व्याख्याप्रशप्तिसूत्र भाषा रूपी है या अरूपी ? प्रश्नोत्तर का आशय-कान के आभूषण के समान भाषा द्वारा श्रोत्रेन्द्रिय का उपकार और उपघात होता है, इसलिए क्या यह श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य होने से रूपी है ? अथवा जैसे धर्मास्तिकाय आदि चक्षुरिन्द्रिय से ग्राह्य नहीं होते, इस कारण अरूपी कहलाते हैं, इसी प्रकार भाषा भी चक्षुरिन्द्रिय द्वारा ग्राह्य न होने से क्या अरूपी नहीं कही जा सकती?; यह प्रश्न का प्राशय है / इसके उत्तर में कहा गया है कि भाषा रूपी है / भाषा को अरूपी सिद्ध करने के लिए जो चक्षु-अग्राह्यत्व रूप हेतु दिया गया है, वह दोषयुक्त है, क्योंकि चक्षु द्वारा अग्राह्य होने से ही कोई अरूपी नहीं होता / जेसे वायु, परमाणु और पिशाच आदि रूपी होते हुए भी चक्षु-ग्राह्य नहीं होते। भाषा सचित्त क्यों नहीं? जीवित प्राणी के शरीर की तरह भाषा अनात्मरूपा होते हुए भी सचित्त (सजीव) क्यों नहीं कही जा सकती ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि भाषा सचित्त नहीं है, वह जीव के द्वारा निसृष्ट कफ, लींट आदि के समान पुद्गलसमूह रूप होने से अचित्त है। भाषा जीव क्यों नहीं?—जो जीव होता है, वह उच्छवास आदि प्राणों को धारण करता है, किन्तु भाषा में उच्छ्वासादि प्राणों का अभाव है, इसलिए वह जीवरूप नहीं है, अजीवरूप है। . भाषा जीवों के होती है, अजीवों के नहीं : प्रश्नोत्तर का आशय-कुछ लोग वेदों (ऋग्, यजुः, साम एवं अथर्व इन चार वेदों) की भाषा को अपौरुषेयी (पुरुषप्रयत्न-रहित) मानते हैं, उनकी मान्यता को ध्यान में रख कर यह प्रश्न किया गया है कि "भाषा जीवों के होती है या अजीवों के भी होती है ?" इसके उत्तर में कहा गया है कि भाषा जीवों के ही होती है। क्योंकि वर्गों का समुह 'भाषा' कहलाता है और वर्ण, जीव के कण्ठ, तालु अादि के व्यापार से उत्पन्न होते है / कण्ठ, तालु आदि का व्यापार जीव में ही पाया जाता है। इसलिए भाषा जीवप्रयत्नकृत होने से जीव के ही होती है / यद्यपि ढोल, मृदंग आदि अजीव वाद्यों से या पत्थर, लकड़ी प्रादि अजीव पदार्थों से भी शब्द उत्पन्न होता है, किन्तु वह भाषा रूप नहीं होता / जीव के भाषा-पर्याप्ति से जन्य शब्द को हो भाषा रूप माना गया है।४ बोलने के पूर्व और पश्चात् भाषा क्यों नहीं ?--जिस प्रकार पिण्ड अवस्था में रही हुई मिट्टी घड़ा नहीं कहलाती, इसी प्रकार बोलने से पूर्व भाषा नहीं कहलाती / जिस प्रकार घड़ा फूट जाने के बाद ठीकरे की अवस्था में धड़ा नहीं कहलाता, उसी प्रकार भाषा का समय व्यतीत हो जाने पर (यानी बोलने के बाद) भाषा नहीं कहलाती / जिस प्रकार घट अवस्था में विद्यमान ही घट कहलाता है, उसी प्रकार बोली जा रही--मुह से निकलती हुई अवस्था में ही भाषा कहलाती है। बोलने से पूर्व और पश्चात् भाषा का भेदन क्यों नहीं ? –बोलने से पूर्व भाषा का भेदन कैसे होगा? क्योंकि जब शब्द-द्रव्य ही नहीं निकले तो भेदन किनका होगा? तथा भाषा का समय 1. भगवती, अ. वत्ति, पत्र 621 2. वही, पत्र 622 3. वही. पत्र 622 4. वहीं, पत्र 622 5. वहीं, पत्र 622 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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