________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 6] देवलोकच्यवनानन्तर अभीचि को भविष्य में मोक्षप्राप्ति 37. से णं भंते ! अभीयो देवे ताओ देवलोगाप्रो आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं उव्वट्टित्ता कहि गछिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। // तेरसमे सए : छट्ठो उद्देसनो समत्तो // 13-6 / / [37 प्र. भगवन् ! वह अभीचि देव उस देवलोक से प्रायु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय होने के अनन्तर उद्वर्तन (मर) करके कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा? [37 उ.] गौतम ! वह वहाँ से च्यव कर महाविदेह-वर्ष (क्षेत्र) में (जन्म लेगा) सिद्ध होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में अभीचि देव के असुरकुमार-पर्याय से च्यवन के बाद भविष्य में महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यजन्म पा कर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का प्रतिपादन किया है। // तेरहवां शतक : छठा उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org