________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 6] भानजे को राज्य सौंपने के पीछे रहस्य-उदायन राजा ने अभीचिकुमार के विषय में जिस राज्य को अनिष्ट कर समझकर उसे नहीं सौंपा, वही राज्य अपने भानजे केशीकुमार को क्यों सौंपा? इसका रहस्य वे ही जानें, या ज्ञानी जानें / परन्तु ऐसा सम्भव है कि भानजे को लघुकर्मी, अत्यधिक श्रद्धालु, विनीत, सम्यग्दृष्टिसम्पन्न एवं राज्य के प्रति अलिप्त समझ कर उसे राज्य सौंपा हो / तत्त्व केवलिगम्य है / केशी राजा से अनुमत उदायन नप के द्वारा त्यागवैराग्यपूर्वक प्रव्रज्याग्रहण, मोक्षगमन 27. तए णं से उदायणे राया कैसि रायाणं आपुच्छइ। [27] तदनन्तर उदायन राजा ने (नवाभिषिक्त) केशी राजा से दीक्षा ग्रहण करने के विषय में अनुमति प्राप्त की। 28. तएणं से केसो राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ एवं जहा जमालिस्स (स० 9 उ०३३ सु० 46-47) तहेव सब्भितरबाहिरियं तहेव जाव निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेति / / [28] तब केशी राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और (शतक 6 उ. 33 सू. 46-47 में कथित) जमाली कुमार के समान नगर को भीतर-बाहर से स्वच्छ कराया और उसी प्रकार यावत् निष्क्रमणाभिषेक (दीक्षामहोत्सव) की तैयारी करने में लगा दिया। 29. तए णं से केसी राया अणेगगणणायग. जाव परिवुडे उदायणं रायं सोहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहं निसीयावेति, नि० 2 अदुसएणं सोवणियाणं एवं जहा जमालिस्स (स० 9 उ० 33 सु० 49) जाव एवं क्यासी-भण सामी ! कि देमो ? किं पयच्छामो ? किणा वा ते अट्ठो ? तए णं से उदायणे राया सि रायं एवं वयासो- इच्छामि णं वेवाणुपिया ! कुत्तियावणाओ एवं जहा जमालिस्स (स० 9 उ० 33 सु० 50-56); नवरं पउमावती अग्गकेसे पडिच्छइ पियविपयोगदूसह / [29] फिर केशी राजा ने अनेक गणनायकों आदि से यावत् परिवत होकर, उदायन राजा को उत्तम सिंहासन पर पूर्वाभिमुख पासीन किया और एक सौ आठ स्वर्ण-कलशों से उनका अभिषेक किया, इत्यादि सब वर्णन (शतक 9, उ. 33, सू. 46 में कथित) जमाली के (दीक्षाभिषेक के) समान कहना / चाहिए, यावत् केशी राजा ने (यह सब होने के बाद करबद्ध हो कर) इस प्रकार कहा–'कहिये, स्वामिन् ! हम आपको क्या दें, क्या अर्पण करें, आपका क्या प्रयोजन (आदेश) है, हमारे लिए) ?' इस पर उदायन राजा ने केशी राजा से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय ! कुत्रिकापण से हमारे लिए रजोहरण और पात्र मंगवानो! इत्यादि सब कथन (6 श., उ. 33 सू. 50-56 में उक्त) जमाली के वर्णनानुसार समझना चाहिए। विशेषता इतनी ही है कि प्रियवियोग को दुःसह अनुभव करने वाली रानी पद्मावती ने (उदायन नृप के स्मृतिचिह्नस्वरूप) उनके अनकेश ग्रहण किए। 30. तए णं से केसी राया दोच्चं पि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयावेति, दो० 20 2 उदायणं रायं सेयापीतएहि कलसे हिं० सेसं जहा जमालिस्स (स० 9 उ०३३ सु०५७-६०) जान सन्निसन्ने तहेव अम्मधाती, नवरं पउमावती हंसलक्खणं पडसाडगं गहाय, सेसं तं जेव जाव सीयाओ पच्चोरुभति, सी०५०२ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवा०२ समणं भगवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org