________________ छट्ठो उद्देसओ : उववाए छठा उद्देशक : उपपात (आदि) चीवीस दण्डकों में सान्तर-निरन्तर उपपात-उद्वर्तन-निरूपण 1. रायगिहे जाव एवं वयासो [1] राजगृह नगर में (श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से) यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा--- 2. संतरं भंते ! नेरतिया उववज्जंति, निरंतरं ने रतिया उववज्जति ? गोयमा! संतरं पि रतिया उववज्जति, निरंतरं पि नेरतिया उववज्जति / [2 प्र.] भगवन् ! नैरयिक सान्तर (समय आदि के अन्तर-व्यवधान सहित) उत्पन्न होते हैं या निरन्तर (समयादि के अन्तर के बिना लगातार) उत्पन्न होते रहते हैं ? [2 उ.] गौतम ! नैरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते रहते हैं / 3. एवं असुरकुमारा वि। [3] असुरकुमार भी इसी तरह (सान्तर-निरन्तर दोनों प्रकार से उत्पन्न होते हैं / ) 4. एवं जहा गंगेये (स०९ 30 32 सु०३-१३) तहेव दो दंडगा जाव संतरं पि वेमाणिया चयंति, निरंतरं पि वेमाणिया चयंति / [4] इसी प्रकार जैसे नौवें शतक के बत्तीसवें गांगेय उद्देशक (सूत्र 3-13) में उत्पाद और उदवर्तना के सम्बन्ध में दो दण्डक कहे हैं, वैसे ही यहाँ भी, यावत वैमानिक सान्तर भी च्यवते हैं और निरन्तर भी च्यवते रहते हैं, (यहाँ तक कहना चाहिए।) विवेचन सर्व संसारी जीवों में सान्तर-निरन्तर-उत्पत्ति-उदवर्तना-प्रस्तुत चार सूत्रों में नेरयिकों से लेकर वैमानिकों तक की उत्पत्ति और उदवर्त्तना सम्बन्धी सान्तर-निरन्तर-प्ररूपणा नौवें शतक के बत्तीसवें गांगेय उद्देशक के अतिदेशपूर्वक की गई है / चमर चंच प्रावास का वर्णन एवं प्रयोजन 5. कहिं णं भंते ! चमरस्स असुरिदस्स असुरकुमाररणो चमरचंचे नामं आवासे पन्नते? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पन्बयस्स दाहिणणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे एवं जहा बितियसए सभाउद्देसवत्तव्वया (स० 2 उ० 8 सु०१) सच्चेव अपरिसेसा नेयम्वा, नवरं इमं नाणतं जाव तिगिच्छकूडस्स उप्पायपन्वयस्स चमरचंचाए रायहाणीए चमरचंचस्स आवासपमयस्स अन्नेसि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org