________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 4] अधोलोक-तिर्यकलोक-ऊर्ध्व लोक के अल्पबहुत्व का निरूपण 70. एतस्स णं भंते ! अहेलोगस्स तिरियलोगस्स उड्ढलोगस्स य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवे तिरियलोए, उड्ढलोए असंखेज्जगुणे, अहेलोए विसेसाहिए / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / [70 प्र.] भगवन् ! अधोलोक, तिर्यग्लोक और ऊर्ध्वलोक में, कौन-सा लोक किस लोक से छोटा (अल्प) यावत् बहुत (अधिक या बड़ा), सम अथवा विशेषाधिक है ? [70 उ.] गौतम ! सबसे थोड़ा (छोटा) तिर्यक् लोक है। (उससे) ऊर्ध्वलोक असंख्यात गुणा है और उससे अधोलोक विशेषाधिक (विशेष बड़ा) है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करते हैं। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में तीनों लोकों को न्यूनाधिकता (छोटे-बड़े की तरतमता) बताई गई है। कौन छोटा-कौन बड़ा?—तिर्यग्लोक सबसे छोटा इसलिए है कि वह केवल 1800 योजन लम्बा है, जबकि उप्रलोक की अवगाहना 7 रज्ज में कुछ कम है, इसलिए वह तिर्यग्लोक से असंख्यातगुना बड़ा है और अधोलोक सबसे अधिक बड़ा (विशेषाधिक) इसलिए है कि उसकी अवगाहना कुछ अधिक 7 रज्जू परिमाण है / इसलिए वह अवलोक से विशेषाधिक है / ' // तेरहवां शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त / / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 616 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2225 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org