________________ चउत्थो उद्देसओ : पुढवी चतुर्थ उद्देशक : (नरक) पृथ्वियाँ द्वारगाथाएँ तथा सात पृथ्वियाँ 1. कति' णं भंते ! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा ! सत्त पुढवीओ पाणताओ, तं जहा-- रयणप्पमा जाव अहेसत्तमा। [1 प्र.] भगवन् ! नरक-पृथ्वियां कितनी कही गई हैं ? [1 उ.] गौतम ! नरक-पृथ्वियां सात कही गई हैं। यथा–रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमा पृथ्वी। प्रथम नैरयिकद्वार--नरकावासों की संख्यादि अनेक पदों से परस्पर तुलना 2. अहेसत्तमाए णं पुढवीए पंच अणुत्तरा महतिमहालया जाव अपतिद्वाणे / ते णं णरगा छट्ठाए तमाए पुढवीए नरहितो महत्तरा चेव 1, महाविस्थिण्णतरा चेव 2, महोवासतरा चेव 3, महापतिरिक्कतरा चेव 4, नो तहा–महापवेसणतरा चेव 1, आइण्णतरा चेव 2, आउलतरा चेव 3, अणोमाणतरा चेव 4, तेसु णं नरएसु नेरतिया छद्वाए तमाए पुढवीए नेरइएहितो महाकम्मतरा चेव 1, महाकिरियतरा चेव 2, महासवतरा चेव 3, महावेयणतरा चेव 4, नो तहा-अप्पकम्मतरा चेव 1, अप्पकिरियतरा चेव 2 अप्पासवतरा चेव 3, अप्पवयणतरा चेव 4 / अप्पिट्टियतरा चेव 1, अप्पजुतियतरा चेव 2; नो तहा-महिड्ढियतरा चेव 1, नो महज्जुतियतरा चेव 2 / [2] अधःसप्तमपृथ्वी में पांच अनुत्तर और महातिमहान् नरकावास यावत् अप्रतिष्ठान तक कहे गए हैं। वे नरकावास छठी तमःप्रभापृथ्वी के नरकावासों से महत्तर (बड़े) हैं, महाविस्तीर्णतर हैं, महान् अवकाश वाले हैं, बहुत रिक्त स्थान वाले हैं। किन्तु वे महाप्रवेश वाले नहीं हैं, वे अत्यन्त आकीर्णतर (संकीर्ण) और व्याकुलतायुक्त (व्याप्त) नहीं हैं, अर्थात्-वे अत्यन्त विशाल हैं। उन नरकावासों में रहे हुए नैरयिक, छठी तमःप्रभापृथ्वी के नरयिकों की अपेक्षा महाकर्म वाले, महाक्रिया बाले महाश्रव वाले एवं महावेदना वाले हैं। वे (तम:प्रभास्थित नैरयिकों की तरह) न तो अल्पकर्म वाले हैं और न आल्प क्रिया, अल्प प्राश्रव और अल्पवेदना वाले हैं / वे नै रयिक अल्प ऋद्धि वाले और अल्पद्युति वाले हैं। वैसे वे महान् ऋद्धि वाले और महाद्युति वाले नहीं हैं। 1. अधिक पाठ--किसी किसी प्रति में ये दो द्वार-गाथाएँ मिलती हैं- नेरइय 1 फास 2 पणिही 3 निरयंते चेव 4 लोयमज्झे य५ / दिसि-विदिसाण य पवहा 5, पवत्तणं अत्थिकाएहि 7 // 1 // अत्थीपएसफसणा 8 ओगाहणया य 9 जीवमोगाढा 10 अस्थिपएसनिसोयण 11 बहस्समे 12 लोगसंठाणे 13 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org