________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 1] [245 को अचक्षुदर्शन कहते हैं। ऐसा अचक्षुदर्शन उत्पत्ति के समय भी होता है, किन्तु चक्षुदर्शनी की उत्पत्ति के निषेध का कारण यह है कि इन्द्रियों का त्याग होने पर ही वहाँ उत्पत्ति होती है। स्त्रीवेदी आदि जीवों की उत्पत्तिनिषेध का कारण नरक में स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी उत्पन्न नहीं होते, क्योंकि उनके भवप्रत्यय नपुंसक वेद होता है। उत्पत्ति के समय नारक श्रोत्रादि इन्द्रियों के उपयोग वाले नहीं होते. क्योंकि उस समय इन्द्रियाँ होती ही नहीं / सामान्य (चेतनारूप) उपयोग इन्द्रियों के अभाव में भी रह सकता है / इसलिए कहा गया है-'नो-इन्द्रियोपयुक्त, उत्पन्न होते हैं / उत्पत्ति-समय में अपर्याप्त होने से मन और वचन दोनों का अभाव होता है। इसलिए कहा गया है---- रत्नप्रभानरकावास में मनोयोगी और बचनयोगी जीव उत्पन्न नहीं होते / जीवों के काययोग तो सदैव रहता है।' रत्नप्रभा के संख्यातविस्तृत नरकावासों से उद्वत्तंना सम्बन्धी उनचालीस प्रश्नोत्तर ___7. इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तोसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं केवतिया नेरइया उबट्टति ? 1, केवतिया काउलेस्सा उध्वट्ट ति ? 2, जाव केवतिया अणागारोवउत्ता उव्वट्टति ? 39 / गोयमा ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु एगसमयेणं जहन्नणं एपको वा दो वा तिम्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा नेरइया उबट्टति 1 / जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिणिवा, उवकोसेणं संखेज्जा काउलेस्सा उध्यति 2 / एवं जाव सण्णी 3-4-5 / असणी ण उबट्टति 6 / जहन्नणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा भवसिद्धीया उच्चति 7 / एवं जाव सुयअन्नाणी 8-13 / विभंगनाणी न उन्दट्टति 14 / चक्खुदंसणी ण उम्वट्ट ति 15 / जहन्नणं एकको वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा अचक्खुदंसणी उच्वट्टति 16 / एवं जाव लोभकसायी 17-28 / सोतिदियोवउत्ता ण उच्वति 29 / एवं जाव फासिदियोवउत्ता न उवटुंति 30-33 / जहन्नणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उषकोसेणं संखेज्जा नोइंदियोवउत्ता उव्वदृति 34 / मणजोगी न उबट्टति 35 / एवं वइजोगी वि 36 / जहन्नणं एक्कोवा दो वा तिग्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा कायजोगी उध्वति 37 / एवं सागारोवउत्ता 38, अणागारोवउत्ता 39 / [7 प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नरकों में से एक समय में (1) कितने नैयिक उद्वसते (मरते-निकलते) है ? (2) कितने कापोतलेश्यी नेरयिक उद्वर्तते हैं ? यावत् (36) कितने अनाकारोपयुक्त (दर्शनोपयोग वाले) नैयिक उद्वर्त्तते हैं ? 1. (क) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 599 (ख) जेसिमवडढो पोग्गलपरियट्टो सेसनो उ संसारो। __ ते सुक्कपक्खिया खलु अहिगे पुण कण्हपक्खीया !! (ग) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2141 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org