________________ 238] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [31-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया है कि पंचप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, इत्यादि प्रश्न, यहाँ सब पूर्ववत् उच्चारण करना चाहिए। [31-2 उ.] गौतम ! पंचप्रदेशी स्कन्ध, (1) अपने आदेश से आत्मा है, (2) पर के यादेश से नो-आत्मा है, (3) तदुभय के प्रादेश से अवक्तव्य है। (4-15) एक देश के आदेश से, सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से तथा एक देश के आदेश से असद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से कथंचित् प्रात्मा है, कथंचित् नो-ग्रात्मा है / इसी प्रकार द्विकसंयोगी सभी (बारह) भंग बनते हैं। (16-22) त्रिकसंयोगी (पाठ भंग होते हैं, उनमें से एक आठवाँ भंग नहीं बनता। 32. छप्पएसियस्स सम्वे पति / [32] षट्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में ये सभी भंग बनते हैं। 33. जहा छप्पएसिए एवं जाव अणंतपएसिए / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरति / // बारसमे सए : दसमो उद्देसओ समत्तो // 12-10 / / / / बारसमं सयं समत्तं // 12 // [33] जैसे षट्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में भंग कहे हैं, उसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिए / हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन--पंचप्रदेशी से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के भंग-पंचप्रदेशी स्कन्ध के 22 भंग बनते हैं / इनमें से पहले के तीन भंग पूर्ववत् सकलादेश रूप हैं। इसके पश्चात् द्विसंयोगी बारह भंग होते हैं तथा त्रिकसंयोगी आठ भंग होते हैं / आठवाँ भंग यहाँ असम्भव होने से घटित नहीं होता / षट्प्रदेशी स्कन्ध में और इससे आगे यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक 23-23 भंग होते हैं / उनका विवरण पूर्ववत् समझना चाहिए।' ॥बारहवाँ शतक : दशवाँ उद्देशक समाप्त / // बारहवां शतक सम्पूर्ण // 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 595-596 (ख) भवगतीसूत्र (हिन्दीविवेचन) भा. 4, पृ. 2131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org