________________ प्रथम शतक : उद्देशक-६ ] [111 [7-4 प्र.] भगवन् ! की जाने वाली वह क्रिया क्या प्रात्मकृत है, परकृत है, अथवा उभयकृत है? [7-4 उ.] गौतम ! वह क्रिया प्रात्मकृत है, किन्तु परकृत या उभयकृत नहीं। [5] सा भते ! कि प्राणुपुम्विकडा कज्जति ? प्रणाणुपुग्विकडा कज्जति ? / गोयमा ! प्राणुपुश्विकडा कज्जति, नो प्रणाणुपुम्विकडा, कज्जति / जा य कडा, जाय कज्जति, जा य कज्जिस्सति सव्वा सा प्राणुपुब्बिकडा, नो प्रणाणुपुस्विकड ति वत्तव्वं सिया / [7-5 प्र.] भगवन् ! जो क्रिया की जाती है, वह क्या प्रानुपूर्वो-अनुक्रमपूर्वक की जाती है, या बिना अनुक्रम से (पूर्व-पश्चात् के बिना) की जाती है ? [7-5 उ.) गौतम ! वह अनुक्रमपूर्वक की जाती है, किन्तु बिना अनुक्रम से नहीं की जाती। जो क्रिया की गई है, या जो क्रिया की जा रही है, अथवा जो क्रिया की जाएगी, वह सब अनुक्रमपूर्वक कुत है। किन्तु बिना अनुक्रमपूर्वक कृत नहीं है, ऐसा कहना चाहिए। 8. [1] अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं पाणातिवाय किरिया कज्जति ? हंता, अत्थि। [8-1 प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिकों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? [8-1 उ.] हाँ, गौतम ! की जाती है। [2] सा भंते ! कि पुट्ठा कज्जति ? प्रपुट्ठा कज्जति ? जाव नियमा छहिसि कज्जति / [8-2 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों द्वारा जो क्रिया की जाती है, वह स्पृष्ट की जाती है या अस्पृष्ट की जाती है ? [8-2 उ.] गौतम ! वह यावत् नियम से छहों दिशाओं में की जाती है / [3] सा भंते ! कि कडा कज्जति ? अकडा कज्जति ? तं चेव जाव' नो प्रणाणुपुन्विकड त्ति वत्तव्वं सिया। [8-3 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों द्वारा जो क्रिया की जाती है, वह क्या कृत है अथवा अकृत है ? [8-3 उ.] गौतम ! वह पहले की तरह जानना चाहिए, यावत्-वह अनुक्रमपूर्वक कृत है, अननुपूर्वक कुत नहीं; ऐसा कहना चाहिए / 6. जहा नेरइया (सु. 8) तहा एगिदियवज्जा भाणितव्वा जाव वेमाणिया। [9] नैरयिकों के समान एकेन्द्रिय को छोड़कर यावत् वैमानिकों तक सब दण्डकों में कहना चाहिए। 10. एकिदिया जहा जीवा (सु. 7) तहा भाणियब्धा / . 1. 'जाब' पद से सू. 7-5 में अंकित 'आणन्धिकडा कज्जति' से लेकर ..." ति वत्तब्वं सिया' तक का पाठ समझ लेना चाहिए। 2. 'जाव' पद से द्वीन्द्रियादि से लेकर वैमानिकपर्यन्त का पाठ समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org