SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 226] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उपयोगात्मा के साथ ऊपर की चार आत्माओं का सम्बन्ध : क्यों हैं, क्यों नहीं ? जिस जीव के उपयोगात्मा है, उसमें ज्ञानात्मा की भजना है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि जीवों में उपयोगात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती। जिस जीव के ज्ञानात्मा है, उसके उपयोगात्मा तो अवश्य हो होता है। इसो तरह जिस जीव के उपयोगात्मा होती है, उसके दर्शनात्मा और जिसके दर्शनात्मा है, उसके उपयोगात्मा अवश्य ही होती है। जिस जीव के उपयोगात्मा है, उसमें चारित्रात्मा को भजना है, क्योंकि असंयती जीवों के उपयोगात्मा तो होती है, परन्तु चारित्रात्मा नहीं हाती / जिस जीव के चारित्रात्मा है, उसके उपयोगात्मा अवश्य हो होतो है। जिस जीव में उपयोगात्मा हातो है, उसमें वीर्यात्मा की भजना है, क्योंकि सिद्धों में उपयोगात्मा होते हुए भी वीर्यात्मा नहीं पाई जाती। ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा में उपयोगात्मा अवश्य हो रहती है, क्योंकि जोव का लक्षण ही उपयोग है। उपयोग लक्षण वाला जीव ही ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य का कारण होता है। उपयोगशून्य घटादि जड़ पदार्थ होते हैं, जिनमें ज्ञानादि नहीं पाये जाते / ज्ञानात्मा के ऊपर की तीन आत्माओं का सम्बन्ध : क्यों हैं और क्यों नहीं ? जिस जीव में ज्ञानात्मा है, उसके दर्शनात्मा अवश्य ही होती है, क्योंकि ज्ञान (सम्यग्ज्ञान) सम्यग्दृष्टि जीवा के हो होता है और वह दर्शनपूर्वक ही होता है। जिस जोव के दर्शनात्मा है, उसके ज्ञानात्मा को भजना है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि जीवों के दर्शनात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती / जिस जीव के ज्ञानात्मा है, उसके चारित्रात्मा की भजना होती है, अविरति सम्यग्दृष्टि जीक के ज्ञानात्मा होते हुए भी चारित्रामा नहीं होती। जिस जीव के चारित्रात्मा है, उसके ज्ञानात्मा अवश्य ही होती है। ज्ञान के बिना चारित्र का अभाव है। जिस जीव में ज्ञानात्मा होती है, उसके वीर्यात्मा की भजना है, क्योंकि सिद्धजीवों में ज्ञानात्मा के होते हुए भी वीर्यात्मा नहीं होती। जिस जीव के वीर्यात्मा है, उसके ज्ञानात्मा को भजना है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि जीवों के वीर्यात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती। दर्शनात्मा के साथ चारित्रात्मा और वीर्यात्मा का सम्बन्ध : क्यों और क्यों नहीं ? जिस जीव के दर्शनात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा और वीर्यात्मा को भजना है। क्योंकि दर्शनात्मा के हाते हुए भी असंयती जीवों के चारित्रात्मा नहीं होती और सिद्धों के वार्यात्मा नहीं होता, जबकि उनमें दर्शनात्मा अवश्य होती है / सामान्यावबोधरूप दर्शन तो सभी जीवों में होता है / चारित्रात्मा और वीर्यात्मा का सम्बन्ध-जिस जीव के चारित्रात्मा होती है, उसके वीर्यात्मा अवश्य होती है, क्योंकि वीर्य के बिना चारित्र का अभाव है, किन्तु जिस जीव में वीर्यात्मा होती है, उसमें चारित्रात्मा की भजना है, क्योंकि असंयत जीवों में वीर्यात्मा होते हुए भी चारित्रात्मा नहीं होती।' 9. एयासि णं भंते ! दवियायाणं कसायायाणं जाव वीरियायाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? ___ गोयमा ! सम्वत्थोवाओ चरित्तायामो, नाणायामो अणंतगुणाओ, कसायायाओ अणंतगुणाओ, जोगायाओ विसेसाहियाओ, वोरियायाओ विसेसाहियाओ, उवयोग-दविय-दसणायाओ तिणि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ। 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 589-590-591 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 4, पृ. 2110 से 2115 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy