________________ बारहवां शतक : : उद्देशक 10] [225 होती है। जिस जीव के ज्ञामात्मा होती है, उसके कषायात्मा की भी भजमा है, क्योंकि सम्यग्ज्ञानी कषायसहित भी होते हैं और कषायरहित भी। जिस जीव के कषायात्मा होती है, उसके दर्शनात्मा अवश्य होती है. दर्शनरहित घटादि जड़ पदार्थों में कषायों का सर्वथा प्रभाव है। जिसके दर्शनात्मा होती है, उसके कषायात्मा की भजना है, क्योंकि दर्शनामा वाले सकषायी और अकषायी दोनों होते हैं। जिसके कषायात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा की भजना है और चारित्रात्मा वालों के भी कषायात्मा की भजना है, क्योंकि कषायवाले जीव विरत और अविरत दोनों प्रकार के होते हैं। अथवा सामायिकादि चारित्र वाले साधकों के कषाय रहती है, जबकि यथाख्यात चारित्र वाले कषायरहित होते हैं। जिस जीव के कषायात्मा है, उसके वीर्यात्मा अवश्य होती है, जो सकरण वीर्य रहित सिद्ध जीव हैं, उनमें कषायों का प्रभाव पाया जाता है / वीर्यात्मा वाले जीवों के कषायात्मा की भजना है, क्यों कि वीर्यात्म वाले जीव सक्थायी और अकषायी दोनों प्रकार के होते हैं। . योगात्मा के साथ आगे की पांच आत्माओं का सम्बन्ध : क्यों है, क्यों नहीं ?--जिस जीव के योगात्मा होती है. उसके उपयोगात्मा अवश्य होती है, क्योंकि सभी सयोगी जीवों में उपयोग होता ही है, किन्तु जिसके उपयोगात्मा होती है, उसके योगात्मा होती भी है और नहीं भी होती। चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगीकेवली और सिद्ध भगवान् में उपयोगात्मा होते हुए भी योगात्मा जिस जीव के योगात्मा होती है, उसके ज्ञानात्मा की भजना है। मिथ्यादष्टि जीवों में योगात्मा होते हुए भी ज्ञानात्मा नहीं होती। इसी प्रकार ज्ञानात्मा वाले जीव के भी योगात्मा की भजना है, चौदहवें गूणस्थानवी अयोगीकेवली और सिद्ध जीवों में ज्ञानात्मा होते हए भी योगात्मा नहीं होती। जिस जीव के योगात्मा होती है, उसके दर्शनात्मा अवश्य होती है, क्योंकि समस्त जीवों में सामान्य अवबोध रूप दर्शन रहता ही है। किन्तु जिस जीव के दर्शनात्मा होती है, उसके योगात्मा की भजना है / दर्शन वाले जीव योगसहित भी होते हैं, योगरहित भी। . . . ... जिस जीव के योगात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा की भजना है, योगात्मा होते हुए भी अविरत जीवों में चारित्रात्मा नहीं होती / इसी तरह चारित्रात्मा वाले जीवों के भी योगात्मा की भजना है, क्योंकि चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगी जीवों के चारित्रात्मा तो है, परन्तु योगात्मा नहीं है। दूसरी वाचना के अनुसार जिसके चारित्रात्मा होती है, उसके योगात्मा अवश्य होती है, क्योंकि प्रत्युपेक्षणादि व्यापाररूप चारित्र योगपूर्वक ही होता है। जिसके योगात्मा होती है, उसके वीर्यात्मा अवश्य होती है, क्योंकि योग होने पर वीर्य अवश्य होता ही है / किन्तु जिसके वीर्यात्मा होती है, उसके योगात्मा की भजना है, क्योंकि अयोगीकेवली में वीर्यात्मा तो है, किन्तु योगात्मा नहीं है / यह बात करण और लब्धि दोनों वीर्यात्माओं को लेकर कही गई है / जहाँ करणवीर्यात्मा है, वहाँ योगात्मा अवश्यम्भावी है, किन्तु जहाँ लब्धिवीर्यात्मा है, वहाँ योगात्मा की भजना है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org