________________ 206] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [4 प्र. भगवन् ! धर्मदेव 'धर्मदेव' किस कारण से कहे जाते हैं ? [4 उ.] गौतम ! जो ये अनगार भगवान ईर्यासमिति आदि समितियों से युक्त, यावत् गुप्तब्रह्मचारी होते हैं ; इस कारण से ये धर्म के देव 'धर्मदेव' कहलाते हैं / 5. से केपट्टणं भंते ! एवं बुच्चइ 'देवाहिदेवा,' देवाहिदेवा' ? गोयमा ! जे इमे अरहता भगवंता उम्पन्ननाण-दसणधरा जाव सम्वदरिसो, से तेणणं जाय 'देवाहिदेवा, देवाहिदेवा। [5 प्र.] भगवन् ! देवाधिदेव 'देवाधिदेव' क्यों कहलाते हैं ? [5 उ.] गौतम ! जो ये अरिहन्त भगवान् हैं, वे उत्पन्न हुए केवलज्ञान-केवलदर्शन के धारक हैं यावत् सर्वदर्शी हैं, इस कारण वे यावत् धर्मदेव कहे जाते हैं। 6. से केपट्टणं भंते ! एवं वच्चइ 'भावदेवा, भावदेवा' ? गोयमा! जे इमे भवणवति-वाणमंतर-जोतिस-वेमाणिया देवा देवगतिनाम-गोयाई कम्माई वेदेति, से तेण?णं जाव 'भावदेवा, भावदेवा' / [6 प्र.] भगवन् ! किस कारण से भावदेव को भावदेव कहा जाता है ? [6 उ.] गौतम ! जो ये भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव हैं, जो देवगति (सम्बन्धी) नामकर्म एवं गोत्रकर्म का वेदन कर रहे हैं, इस कारण से, देवभव का वेदन करने वाले, वे 'भावदेव' कहलाते हैं / विवेचन भव्यबध्यदेव आदि पंचविध देव : अर्थ और स्वरूप-जो क्रीड़ा स्वभाव वाले हैं। अथवा जिनकी आराध्यरूप से स्तुति की जाती है, वे देव हैं / (1) भव्य-द्रव्य-देव-भव्यद्रव्यदेव में द्रव्यशब्द अप्राधान्यवाचक है। भूतकाल में देव पर्याय को प्राप्त हुए अथवा भविष्यकाल में देवत्व को प्राप्त करने वाले, किन्तु वर्तमान में देव के गुणों से शून्य होने के कारण वे अप्रधान हैं / भूतभाव पक्ष में-भूतकाल में देवत्वपर्याय को प्राप्त (प्रतिपन्न), भावदेवत्व से च्युत द्रव्यदेव हैं, तथा भाविभाव पक्ष में-भविष्य में देवत्व पर्याय के योग्य---जो देवरूप से उत्पन्न होने वाले हैं, वे भी द्रव्यदेव हैं / प्रस्तुत में भाविभाव पक्ष को दृष्टि से यहाँ 'भव्य एवं द्रव्य देव' का कथन किया गया है। (2) नरदेव-मनुष्यों में जो देवतुल्य-आराध्य हैं, अथवा क्रीड़ा-कान्ति आदि विशेषताओं से युक्त मनुष्येन्द्र-चक्रवर्ती हैं, वे नरदेव कहलाते हैं / (3) धर्मदेव-श्रुत चारित्रादि धर्म से जो देवतुल्य हैं, अथवा जो धर्मप्रधान देव हैं, वे धर्मदेव हैं / (4) देवातिदेव-देवाधिदेव–पारमार्थिक देवत्व के कारण जो शेष (पूर्वोक्त सभी) देवों को 1. देवातिदेवा, देवाधिदेवा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org