________________ सत्तमो उद्देसओ : लोगे सप्तम उद्देशक : लोक का परिमाण लोक का परिमाण 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी [1] उस काल और उस समय में यावत् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार प्रश्न किया 2. केमहालए णं भंते ! लोए पन्नत्ते ? गोयमा ! महतिमहालए लोए पन्नत्ते; पुरथिमेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ, दाहिणेणं असंखिज्जानो एवं चेव, एवं पच्चस्थिमेण वि, एवं उत्तरेण वि, एवं उड्ड पि, अहे असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडोओ आयाम-विक्खंभेणं / [2 प्र.] भगवन् ! लोक कितना बड़ा है ? [2 उ.] गौतम ! लोक महातिमहान् है / वह पूर्वदिशा में असंख्येय कोटा-कोटि योजन है। इसी प्रकार दक्षिण दिशा में भी असंख्येय कोटा-कोटि योजन है / पश्चिम, उत्तर, एवं उर्व तथा अधोदिशा में भी असंख्येय कोटा-कोटि योजन-पायाम-विष्कम्भ (लम्बाई-चौड़ाई) वाला है। विवेचन–प्रस्तुत दो सूत्रों में लोक को लम्बाई-चौड़ाई पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्व और अधोदिशा में असंख्येय-असंख्येय कोटा-कोटि योजन-प्रमाण बता कर महातिमहानता सिद्ध की गई है। लोक में परमाणुमात्र प्रदेश में भी जीव के जन्ममरण से अरिक्तता को दृष्टान्तपूर्वक प्ररूपणा 3 [1] एयंसि णं भंते ! एमहालयंसि लोगसि अस्थि केइ परमाणुयोग्गलमत्त वि पएसे जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि ? गोयमा ! नो इण? सम। [3-1 प्र.] भगवन् ! इतने बड़े लोक में क्या कोई परमाण-पुद्गल जितना भी आकाशप्रदेश ऐसा है, जहाँ पर इस जीव ने जन्म-मरण न किया हो ? [3-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / [2] से केण?णं भंते ! एयं वुच्चइ 'एयंति णं एमहालयंसि लोगसि नस्थि केई परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे जत्य गं अयं जीवे ण जाए वा न मए वावि' ? / गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे अयासयस्स एगं महं अयावयं करेज्जा; से गं तत्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org