________________ बारहवां शतक : उद्देशक 6] 189 चन्द्रमा और सूर्य की अप्रमाहिषियों का वर्णन .. 6. चंदस्त णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्तायो ? जहा दसमसए (स० 10 उ० 5 सु० 27) जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं / / [6 प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र को कितनी अनमहिषियाँ [6 उ.] गौतम ! जिस प्रकार दशवें शतक (के उद्देशक 5 सू. 27) में कहा है, तदनुसार. यावत् अपनी राजधानी में सिंहासन पर मैथुन-निमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है, (यहाँ तक कहना चाहिए।) 7. सूरस्स वि तहेव (स० 10 उ० 5 सु० 28) / [7] सूर्य के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार (शतक 10, उ. 5, सूत्र 28 के अनुसार) कहना चाहिए। विवेचन--ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र एवं सूर्य को पट्टरानियाँ-चन्द्र की पट्टरानियाँ चार हैं-(१) चन्द्रप्रभा, (2) ज्योत्स्नाभा, (3) अचिौली और (4) प्रभंकरा / इसी प्रकार ज्योतिष्केन्द्र सूर्य को भी चार पट्टरानियाँ हैं—(१) सूर्यप्रभा, (2) प्रातपाभा (3) अचिर्माली और (4) प्रभंकरा / जोवाभिगमसूत्र प्र. 3 ज्योतिष्क उद्देशक के अनुसार सारा वर्णन जानना चाहिए।' चन्द्र-सूर्य के कामभोग सुखानुभव का निरूपण 8. चंदिम-सूरिया णं भंते ! जोतिसिदा जोतिसरायाणो केरिसए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाण-बलत्थे पढमजोवणुट्ठाणबलत्याए मारियाए सद्धि अचिरवत्तविवाहकज्जे अत्थगवेसणाए सोलसवासविप्पवासिए, से णं तओ लट्ठ कयकज्जे प्रणहसमग्गे पुणरवि नियगं गिह हव्वमागते हाते कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए मणुण्णं थालिपागसुद्ध अट्ठारसवंजणाकुलं भोयणं भुत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसि; वण्णओ० महब्बले (स० 11 उ० 11 सु० २३)जाव सयणोक्यारकलिए ताए तारिसियाए मारियाए सिंगारागारचारवेसाए जाव कलियाए अणुरत्ताए अविरत्ताए मणाणुकूलाए सद्धि इ8 सद्दे फरिसे जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरेज्जा / से गं गोयमा ! पुरिसे विओसमणकालसमयंसि केरिसयं सातासोक्खं पच्चणुभवमाणे विहरति ? ओरालं समणाउसो! तस्स णं गोयमा ! पुरिसस्स कामभोएहितो वाणमंतराणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिटुतरा 1. (क) भगबती. शतक 10 उ. 5 / सू. 27-28 (ख) जीवाभिगम-प्रतिपत्ति 3, उ. 2 पत्र 383 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org