________________ बारहवां शतक : उद्देशक 4] [147 पुद्गल, एक ओर एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक चतुष्प्रदेशी स्कन्ध होता है / अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल, एक ओर दो द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक चतुष्प्रदेशी स्कन्ध होता है / अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल, एक अोर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक अोर दो त्रिप्रदेशो स्कन्ध होते हैं / अथवा एक ओर तीन द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध होता है। पांच भाग किये जाने पर-एक ओर पृथक-पृथक चार परमाणु-पुद्गल और एक ओर एक पंचप्रदेशिक स्कन्ध होता है / अथवा एक अोर पृथक्-पृथक् तीन परमाणु-पुद्गल, एक ओर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक चतुष्प्रदेशी स्कन्ध होता है / अथवा एक अोर पृथक-पृथक् तीन परमाणु-पुद्गल और एक ओर दो त्रिप्रदेशी स्कन्ध होते हैं / अथवा एक अोर पृथक्-पृथक् दो परमाणु पुद्गल, एक ओर दो द्विप्रदेशो स्कन्ध और एक अोर एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध होता है / अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल और एक ओर चार द्विप्रदेशी स्कन्ध होते हैं। छह भाग किये जाने पर-एक ओर पृथक्-पृथक पांच परमाणु-पुद्गल और एक ओर एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर चार परमाणु-पुद्गल पृथक-पृथक्, एक ओर एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध और एक ओर एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर पृथक्-पृथक् तीन परमाणु-पुद्गल और एक ओर तीन द्विप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं। सात विभाग किये जाने पर-एक ओर पृथक-पृथक् छह परमाणु-पुद्गल और एक और एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध होता है / अथवा एक ओर पृथक-पृथक् पांच परमाणु-पुद्गल और एक ओर दो द्विप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं। आठ विभाग किये जाने पर-एक ओर पृथक्-पृथक् सात परमाणु-पुद्गल और एक ओर एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता है। नव विभाग किये जाने पर-पृथक्-पृथक् नौ परमाणु-पुद्गल होते हैं। विवेचन नवप्रदेशी स्कन्ध के विभक्त होने पर 28 विकल्पदो विभाग-१-८।२-७। 3-6 / 4-5 / तीन विभाग-१-१-७। 1-2-6 // 1-3-5 // 1-4-4 / [2-2-5] 2-3-4 / 3-3-3 // चार विभाग–१-१-१-६॥ 1-1-2-5 // 1-1-3-4 / 1-2-2.4 / 1-2-3-3 / 2-2-2-3 / पांच विभाग-१-१-१-१-५॥ 1.1-1-2-4 / 1-1-1-3-3 / 1-1-2-2-3 / 1-2-2-2-2 / छह विभाग-१-१-१-१-१-४॥ 1-1-1-1-2-3 / 1-1-1-2-2-2 / सात विभाग-१-१-१-१-१-१-३। 1-1-1-1-1-2-2 / आठ विभाग-१-१-१-१-१-१-१-२१ नौ विभाग--१-१-१-१-१-१-१-१-१। इस प्रकार नौ प्रदेशी स्कन्ध के कुल 4+6+6+5+3+2+1+1=28 विकल्प हुए। ब्र केट वाला विकल्प [2-2-5] शून्य है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org