________________ 138] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (1) जयन्ती हर्षित, सन्तुष्ट होकर देवानन्दा के समान भगवान् को बन्दन-नमस्कारानन्तर श्रद्धापूर्वक प्रव्रज्या ग्रहण करती है / ) (2) भगवान् द्वारा प्रवजित साध्वी जयन्ती ने प्रार्या चन्दनबाला की शिष्या बन कर अंग शास्त्रों का अध्ययन किया, गुरुणो की आज्ञानुसार संयमपालन किया / (3) तपश्चरण द्वारा सिद्ध-बुद्ध मुक्त एवं सर्व दुःख रहित हुईं।' // बारहवाँ शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त / / 1. (क) भगवती. शतक 9, उ. 33, सू. 17-20 तक का देवानन्दावर्णन / (ख) 'भगवती. (विवाहपण्णत्ति) (मूलपाट-टिप्पणयुक्त) पृ, 572 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org