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________________ 14 // [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अस्ती भंग-एक समयाधिक जघन्यस्थिति वाले नारकों के क्रोधोपयुक्त आदि 80 भंग इस प्रकार हैं- असंयोगी 8 भंग (चार भंग एक-एक कषाय बालों के, चार भंग बहुत कषाय वालों के), द्विक संयोगी 24 भंग, त्रिकसंयोगी 32 भंग, चतुष्कसंयोगी 16 भंग, यों कुल 80 भंग होते हैं / नारकों के कहाँ, कितने भंग ? –प्रत्येक नरक में जघन्य स्थिति वाले नारक सदा पाये जाते हैं, उनमें क्रोधोपयुक्त नैरयिक बहुत ही होते हैं / अतः उनमें मूलपाठोक्त 27 भंग क्रोधबहुवचनान्त वाले होते हैं / एक समय अधिक से लेकर संख्यात समय अधिक जघन्यस्थिति (मध्यम) वाले नारकों में पूर्वोक्त 80 भंग होते हैं। इनमें क्रोधादि-उपयुक्त नारकों की संख्या एक और अनेक होती है। इस स्थिति वाले नारक कभी मिलते हैं, कभी नहीं मिलते। असंख्यात समय अधिक की स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकों में पूर्वोक्त 27 भंग पाये जाते हैं / इस स्थिति वाले नारक सदा काल पाये जाते हैं और वे बहुत होते हैं।' द्वितीय-अवगाहनाद्वार 10. इमीसे गं भंते ! रतणप्पमाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवतिया ओगाहाणाठाणा पण्णता / गोयमा! असंखेज्जा प्रोगाहणाठाणा पणत्ता। तं जहा-जनिया प्रोगाहणा, पदेसाहिया जहन्निया प्रोगाहणा, दुप्पदेसाहिया जहन्निया प्रोगाहणा जाव असंखिज्जपदेसाहिया जहन्निया प्रोगाहणा, तप्पाउग्गुक्कोसिया प्रोगाहणा। [10. प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी (प्रथम नरक भूमि) के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में रहने वाले नारकों के अवगाहना स्थान कितने कहे गए हैं ? 10. उ.] गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैंजघन्य अवगाहना (अंगुल के असंख्यातवें भाग), (मध्यम अवगाहना) एक प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, यावत् असंख्यात प्रदेशाधिक जघन्य अवमाना, तथा उसके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना (जिस नारकावास के योग्य जो उत्कृष्ट अवगाहना हो)। 11. इमोसे णं भंते ! रतणप्पभाए पुढवोए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगसि निरयावासंसि जहनियाए प्रोगाहणाए बढ़माणा ने रतिया कि कोहोवउत्ता० ? असीति भंगा भाणियन्वा जाव संखिज्जयदे साधिया जहन्निया प्रोगाहणा। असंखेज्जपदे. साहियाए जहन्नियाए प्रोगाणाए बट्टमाणाणं तप्पाउग्गुक्कोसियाए प्रोगाहणाए वट्टमाणाणं नेरइयाणं दोसु वि सत्तावीसं भंगा। (11. प्र.) भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में जघन्य अवगाहना वाले नरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा लोभोपयुक्त हैं ? [11. उ.] 'गौतम ! जघन्य अवगाहना वालों में अस्सी भंग कहने चाहिए, यावत् संख्यात प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना वालों के भी अस्सी भंग कहने चाहिए / असंख्यात-प्रदेश अधिक जघन्य 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 69-70. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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