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________________ एक्कारसमो उद्देसओ : ग्यारहवाँ उद्देशक काल : काल (प्रादि से सम्बन्धित चर्चा) 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नामं नगरे होत्था, वण्णो / दूतिपलासए चेतिए, घण्णो जाव पुढविसिलावट्टओ। [1j उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। उसका वर्णन करना चाहिए। वहाँ द्युतिपलाश नामक उद्यान था / उसका वर्णन करना चाहिए यावत् उसमें एक पृथ्वीशिलापट्ट था। 2. तत्थ णं वाणियग्गामे नगरे सुदसणे नामं सेट्ठी परिवसति अढे जाव अपरिभूते समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ / [2] उस वाणिज्यग्राम नगर में सुदर्शन नामक श्रेष्ठी रहता था। वह पाढ्य यावत् अपरिभूत था / वह जीव-अजीव प्रादि तत्त्वों का ज्ञाता, श्रमणोपासक होकर यावत् विचरण करता था। 3. सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति / [3] (एक बार) श्रमण भगवान महावीर स्वामी का वहाँ पदार्पण हुआ, यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी। 4. तए णं सुदंसणे सेट्ठी इमोसे कहाए लद्धठे समाणे हद्वतुठे हाते कय जाव पायच्छित्ते सवालंकारविभूसिए सातो गिहाओं पडिनिक्खमति, सातो गिहाओ प० 2 सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणणं पायविहारचारेणं महया पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ते वाणियग्गामं नगरं मझमझेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव दुतिपलासए चेतिए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, ते. उ० 2 समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति, तं जहा–सचित्ताणं दवाणं जहा उसभदत्तो (स. 9 उ. 33 सु. 11) जाव तिबिहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासति / [४तत्पश्चात् वह सुदर्शन श्रेष्ठी इस बात (भगवान् के पदार्पण) को सुन कर अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हया। उसने स्नानादि किया, यावत् प्रायश्चित्त करके समस्त वस्त्रालंकारों से विभूषित हो कर अपने घर से निकला / फिर कोरंट-पुष्प की माला से युक्त छत्र धारण करके अनेक पुरुषवर्ग से परिवत हो कर, पैदल चल कर वाणिज्यग्राम नगर के बीचोंबीच हो कर निकला और जहाँ | तिपलाश नामक उद्यान था, जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ पाया / फिर (श. 6 उ. 33 सू. 11 में) ऋषभदत्त-प्रकरण में जैसा कहा गया है, तदनुसार सचित्त द्रव्यों का त्याग आदि पांच अभिगमपूर्वक वह सुदर्शन श्रेष्ठी भी, श्रमण भगवान महावीर के सम्मुख गया, यावत् तीन प्रकार से भगवान की पर्युपासना करने लगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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