________________ पंचमो उद्देसओ : पुढवी पंचम उद्देशक : पृथ्वी चौबीस दण्डकों की आवास संख्या का निरूपण--- 1. कति णं भंते ! पुढवीनो पण्णत्तानो ? गोयमा ! सत्त पुढवीनो पण्णत्तायो / तं जहा-रयणप्पमा जाव तमतमा। / [1. प्र.] भगवन् ! (अधोलोक में) कितनी पृथ्वियाँ (नरकभूभियाँ) कही गई हैं ? [1. उ.] गौतम ! सात पृथ्वियां कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं-रत्नप्रभा से लेकर यावत् तमस्तमःप्रभा तक। 2. इमी से णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पण्णता? गोतमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता / गाहा तीसा य पण्णवीसा पण्णरस दसेव या सयसहस्सा। तिण्णेगं :पंचूणं पंचेव अणुत्तरा निरया // 1 // [2. प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नारकावास-नैरयिकों के रहने के स्थान कहे गए हैं ? [2. उ.] गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास कहे गए हैं / नारकावासों की संख्या बताने वाली गाथा इस प्रकार है गाथार्थ-प्रथम पृथ्वी (नरकभूमि) में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पांचवीं में तीन लाख, छठी में 5 कम एक लाख और सातवीं में केवल पांच नारकावास हैं। 3. केवतिया णं भंते ! असुरकुमारावाससतसहस्सा पण्णता? एवं चोयट्ठी असुराणं, चउरासीती य होति नागाणं / बावत्तरी सुवण्णाण, वाउकुमाराण छण्णउती // 2 // दीव-दिसा-उदहीणं विज्जुकुमारिद-थणिय-मग्गीणं / छण्हं पि जुयलगाणं छावत्तरिमो सतसहस्सा // 3 // [3. प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने लाख आवास कहे गये हैं ? [3. उ.] गौतम ! इस प्रकार हैं-असुरकुमारों के चौंसठ लाख ग्रावास कहे हैं / इसी प्रकार नागकुमारों के चौरासी लाख, सुपर्णकुमारों के 72 लाख, वायुकुमारों के 96 लाख, तथा द्वीपकुमार, दिक्कुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार, इन छह युगलकों (दक्षिणवर्ती और उत्तरवर्ती दोनों के 76-76 लाख आवास कहे गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org