________________ बीओ उद्देसओ : द्वितीय उद्देशक सालु : शालूक (के जोव-सम्बन्धी) 1. सालुए भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे ? गोयमा ! एगजीवे, एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियवा जाव अणंतखुत्तो / नवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं / सेसं तं चेव / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। // एक्कारसमे सए बीओ उद्देसो समत्तो // 11. 2 // [1 प्र. भगवन् ! क्या एक पत्ते वाला शालक (उत्पल-कन्द) एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला है ? [1 उ.] गौतम ! वह (एक पत्र वाला शालूक) एक जीव वाला है; यहाँ से ले कर यावत् अनन्त बार उत्पत्र हुए हैं; तक उत्पल-उद्देशक की सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष इतना हो है कि शालू क के शरीर को अवगाहना जघन्य अगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की है। शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए / ___ 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! यह इसी प्रकार है !' यों कह कर गौतमस्वामी, यावत् विचरते हैं। विवेचन.. शालक जोव सम्बन्धी वक्तव्यता-प्रस्तुत सूत्र में शालक (उत्पलकन्द) के जीव के सम्बन्ध में सारी वक्तव्यता पूर्व उद्देशक के 32 द्वारों का अतिदेश कर के बताई है। केवल अवगाहना की प्ररूपणा में अन्तर है। शेष सभी --उपपात, परिमाण, अपहार, बंध, वेद, उदय, उदीरणा, दृष्टि, ज्ञान, योग, उपयोग आदि सभी द्वारों की प्ररूपणा समान है / // ग्यारहवां शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त / / 1. बियाहपषणत्तिसूतं, (मूलपाठ-टिप्पण) भा. 2, पृ. 513 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org