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________________ स्वीकार और स्वप्नजागरिका 77, कौटुम्विक पुरुषों द्वारा उपस्थानशाला की सफाई और सिंहासनस्थापन 77, बल राजा द्वारा स्वप्नपाठक प्रामंत्रित 78, स्वप्नपाठकों से स्वप्न-कथन और उनके द्वारा समाधान 80, विमान और भवन 82, राजा द्वारा स्वप्नपाठक सत्कृत एवं रानी को स्वप्नफल सुना कर प्रोत्साहन 82, स्वप्नफल श्रवणानन्तर प्रभावती द्वारा यत्नपूर्वक गर्भरक्षण 83, पुवजन्म, दासियों द्वारा बधाई और राजा द्वारा उन्हें प्रीतिदान 85, पुत्रजन्ममहोत्सव एवं नामकरण का वर्णन 86, महाबल का पंच धात्रियों द्वारा पालन एवं तारुण्यभाव 89, बल राजा द्वारा राजकूमार के लिए प्रासादनिर्माण 90, आठ कन्यानों के साथ विवाह 90. नव वधुओं को प्रीतिदान 91, धर्मघोष अनगार का पदापंण, परिषद् द्वारा पर्युपासना 94, महाबल द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण 95, महाबल अनगार का अध्ययन, तपश्चरण, समाधिमरण एवं स्वर्गगमन 96, पूर्वभव का रहस्य खोल कर पल्योपमादि के क्षय-उपचय की सिद्धि 97 बारहवाँ उद्देशक : आलभिका नगरी (में प्ररूपणा) पालभिका नगरो के श्रमणोपासकों की देवस्थितिविषयक जिज्ञासा एवं ऋषिभद्र के उत्तर के प्रति अश्रद्धा 99, भगवान् द्वारा समाधान से सन्तुष्ट श्रमणोपासकों द्वारा ऋषिभद्र से क्षमायाचना 100, ऋषिभद्र के भविष्य के सम्बन्ध में कमान 102. मुद्गल परिव्राजक 104, विभंगज्ञानी मुद्गल द्वारा अतिशय ज्ञान की घोषणा और जनप्रतिक्रिया 104, भगवान द्वारा सत्यासत्य का निर्णय 105, मुदगल परिवाजक द्वारा निर्गन्थप्रव्रज्याग्रहण एवं सिद्धिप्राप्ति 106 बारहवां शतक प्राथमिक उद्देशक-परिचय 108, दश उद्देशकों के नाम 110. 110 प्रथम उद्देशक : शंख (और पुष्कली श्रमणोपासक) शख और पुष्कली का संक्षिप्त परिचय 110, भगवान का श्रावस्ती में पदार्पण, श्रमणोपासकों द्वारा धर्मकथाश्रवण 111, शंख श्रमणोपासक द्वारा पाक्षिक पौषधार्थ श्रमगोपासकों को भोजन तैयार कराने का निर्देश 112, प्राहार तैयार कराने के बाद शंख को बुलाने के लिए पुष्कली का गमन 115, गहागत पुष्कली के प्रति शंखपत्नी द्वारा स्वागत-शिष्टाचार और प्रश्नोत्तर 116, पौषधशाला में स्थित शंख को पूष्कली द्वारा प्रहार करते हए पौषध का आमंत्रण और उसके द्वारा अस्वीकार 116, पुष्कली कथित वृत्तान्त सुनकर श्रावकों द्वारा खाते-पीते पौषधानपालन 117, शंख एवं अन्य श्रमणोपासक भगवान् की सेवा में 118, भगवान् का उपदेश और शंख श्रमणोपासक की निन्दादि न करने की प्रेरणा 119, भगवान द्वारा विविध जागरिका-प्ररूपणा 121, शंख द्वारा क्रोधादिपरिणामविषयक प्रश्न और भगवान् द्वारा उत्तर 122, श्रमणोपासकों द्वारा शंखश्रावक से क्षमायाचना, स्वगृहगमन 124, शंख की मुक्ति के विषय में गौतम का प्रश्न, भगवान का उत्तर 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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