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________________ प्रस्तुत आगम-प्रकाशन के सहयोगी श्रीमान सेठ एस. रिखबचन्दजी चोरडिया [जीवन-रेखा] अकबर इलाहाबादी का एक प्रसिद्ध शेर है सातप को खुदापत कहो. प्रातप खुदा नहीं . लेकिन खुदा के नूर से, आतप जुदा नहीं। आशय यह है कि मनुष्य ईश्वर नहीं है किन्तु उसमें ईश्वरीय गुण अवश्य हैं और यही ईश्वरीयगुण-- दया, सत्यनिष्ठा, सेवा-भावना, उदारता और परोपकारवृत्ति मनुष्य को मनुष्य के रूप में, या कहें कि ईश्वर के पुत्र के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। स्वर्गीय रिखबचन्दजी चोरडिया सच्चे मानव थे। उनका जीवन मानवीय सदगुणों से अोतप्रोत था। सेवा और परोपकारवत्ति उनके मन के कण-कण में रमी थी। आपने अपने पुरुषार्थ-बल से विपुल लक्ष्मी का उपार्जन किया और पवित्र मानवीय भावना से जन-जन के हितार्थ एवं धर्म तथा समाज की सेवा के लिए उस लक्ष्मी का सदुपयोग भी किया। वे अाज हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनके सद्गुणों की सुवास हमारे मन-मस्तिष्क को आज भी प्रफुल्लित कर रही है / अापका जन्म नोखा (चांदावतों का) के प्रसिद्ध चोरडिया परिवार में हवा / ग्रापके पिता श्री सिमरथमलजी सा. चोरडिया स्थानकवासी, जैन समाज के प्रमुख श्रावक तथा प्रसिद्ध पुरुष थे। आपकी माता श्री गट्ट बाई भी बड़ी धर्मनिष्ठ, सेवाभावी और सरलात्मा श्राविका थी। इस प्रकार माता-पिता के सुसंस्कारों में पले-पुसे श्रीमान् रिखबचन्दजी भी सेवा, सरलता, उदारता तथा मधुरता को मूत्ति थे / श्रीमान् सिमरथमलजी सा. के चार सुपुत्र थे (1) श्री रतनचन्दजी सा. चोरडिया (2) श्री बादलचन्दजी सा. चोरडिया (3) श्री सायर चन्दजी सा. चोरडिया (4) श्री रिखबचन्दजी सा. चोरडिया मद्रास में प्रापका फाइनेन्स का प्रमुख व्यापार था / अापने सदैव मधुरता एवं प्रामाणिकता के साथ, न्याय-नीतिपूर्वक व्यवसाय किया। पापकी धर्मपत्नी श्रीमती उमरावकवर बाई बड़ी धर्मशीला श्राविका हैं / सन्त-सतियों की सेवा में सदा तत्पर रहती हैं और सन्तान में धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण करने में दक्ष हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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