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________________ प्रकाशकीय व्याख्याप्रज्ञप्ति का द्वादशाङ्गी में यद्यपि पांचवां स्थान है तथापि वर्तमान में उपलब्ध आगमों में यह सब से अधिक विशाल आगम है। विशालता के साथ इसमें विषयों का वैविध्य भी ऐसा है कि एक-एक शतक, यहां तक कि एक-एक उद्देशक में भी पृथक-पृथक विषयों का कहीं-कहीं प्रतिपादन किया गया है / व्याख्याप्रज्ञप्ति के दो खण्ड पूर्व में प्रकाशित किए जा चुके हैं। तीसरा खण्ड पाठकों के कर-कमलों में प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें ग्यारहवें से उन्नीसवें शतक तक का समावेश हुमा है / आशा है अगले खण्ड में शेष भाग का समावेश कर यथासंभव शीघ्र जिज्ञासु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकेगा। जैसा कि पाठकों को विदित है, इस खण्ड का भी अनुवाद मुनिराज श्री पदमचन्दजी महाराज के विद्वान् शिष्य पं. र. श्री अमरचन्द्रजी म. ने किया है। आगम प्रकाशन-समिति इस महत्त्वपूर्ण सहयोग के लिए दोनों मुनिराजों के प्रति अत्यन्त आभारी है। हम अपने समस्त अर्थसहयोगी महानुभावों के प्रति भी कृतज्ञ हैं, जिनके उदार सहयोग से आगमप्रकाशन का यह परम पावन प्रयास चाल हुमा और अग्रसर हो रहा है। प्रस्तुत ग्रागम के प्रकाशन में श्रीमान सेठ एस. रिखबचन्दजी सा, चोरड़िया का विशिष्ट आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है, अतः उनका आभार स्वीकार करना भी हम अपना कर्त्तव्य मानते हैं। सम्पादन-सहयोगी महानुभाव भी, जिनकी नामावली अलग दी जा रही है, हार्दिक धन्यवाद के पात्र हैं / आशा है भविष्य में भी इसी प्रकार आगमप्रेमी धर्मनिष्ठ महानुभावों का सहयोग प्राप्त होता रहेगा। समिति ने पागम प्रकाशन का कार्य स्व. श्रद्धय पंडितप्रवर यूवाचार्य मुनिश्री मिश्रीमलजी म. सा. की प्रागमज्ञान के अधिकाधिक प्रचार-प्रसार की पावनतम भावना से प्रेरित होकर प्रारंभ किया था। प्राज युवाचार्यश्रीजी हमारे मध्य विद्यमान नहीं हैं। किन्तु उन महापुरुष की भावना को सफल बनाने में आप सबका सहयोग प्राप्त होना आवश्यक है और वह इस रूप में कि यागमों के ग्राहक अधिक से अधिक बनें / प्रत्येक उपाश्रय और ग्रन्थालय में ये पहंचें, जिससे समाज में सैद्धान्तिक ज्ञान की चेतना जागत हो। प्राशा है पाठकगण इसके लिए प्रयत्नशील होंगे। रतनचन्द मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष जतनराज मेहता प्रधान मंत्री श्री आगम प्रकाशन समिति व्यावर (राज.) चांदमल विनायकिया मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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