________________ सत्तमाइ-चोत्तीसइम पज्जंता उद्देसा सातवें से चौतीसवें तक के उद्देशक उत्तर-अंतरदीवा : उत्तरवर्ती (अट्ठाईस) अन्तर्वीप 1. कहिं गं भंते ! उत्तरिल्लाणं एगोख्यमणुस्साणं एगोरुयदीवे नाम दीवे पन्नत्ते? एवं जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव सुद्धदंतदीयो त्ति / एए अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियन्वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरति / // दसमे सए सत्तमाइ-चोत्तीसइम पज्जंता उद्देसा समत्ता // 10.7-34 // ॥दसमं सयं समत्तं // [1 प्र.] भगवन् ! उत्तरदिशा में रहने वाले एकोरुक मनुष्यों का एकोरुकद्वीप नामक द्वीप कहाँ है ? [1 उ.] गौतम! एकोरुकद्वीप से लेकर यावत् शुद्धदन्तद्वीप तक का समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार जानना चाहिए। (प्रत्येक द्वीप के सम्बन्ध में एक-एक उद्देशक है।) इस प्रकार अट्ठाईस द्वीपों के ये अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! भगवन् ! यह इसी प्रकार है !', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन-उत्तरदिशावर्ती अट्ठाईस अन्तर्वीप-प्रस्तुत सूत्र में उत्तरदिग्वर्ती अट्ठाईस अन्तर्वीपों का निरूपण जीवाभिगमसूत्र के अतिदेशपूर्वक किया गया है / इससे पूर्व नौवें शतक के तीसरे से तीसवें उद्देशक तक में दक्षिणदिशा के अन्तर्वीपों का वर्णन किया जा चुका है। प्रस्तुत दशम शतक के 7 वें से 34 3 उद्देशक तक में उत्तरदिशा के अन्तर्वीपों का निरूपण किया गया है, जो दक्षिणदिग्वर्ती अन्तर्वीपों के ही समान है / 28 नाम भी समान हैं।' // दशम शतक : सातवें से चौतीसवें उद्देशक तक सम्पूर्ण // // दशम शतक सम्पूर्ण // 1. (क) वियाहपण्णतिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. 2, पृ. 505 (ख) जीवाभिगमसूत्र प्रतिपत्ति 3, उद्देशक 1, पत्र 144-56 (पागमोदय.) में विस्तत वर्णन देखिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org