________________ दशम शतक : उद्देशक-५] 35 प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र ईशान के लोकपाल सोम महाराजा की कितनी अग्रमहिषियाँ कही गई हैं ? [35 उ. आर्यो ! (सोम लोकपाल की) चार अग्रमहिषियाँ हैं / यथा--पृथ्वी, रात्रि, रजनी और विद्युत् / इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषो को देवियों के परिवार आदि शेष समग्र वर्णन शक्रेन्द्र के लोकपालों के समान है / इसी प्रकार यावत् वरुण लोकपाल तक जानना चाहिए। विशेष यह है कि इनके विमानों का वर्णन चौथे शतक के प्रथम उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए / शेष पूर्ववत्, यावत्-वह मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर आर्य स्थविर यावत् विचरण करते हैं। विवेचन-ईशानेन्द्र एवं उसके लोकपालों का देवी-परिवार—प्रस्तुत दो सूत्रों (34-35) में ईशानेन्द्र (द्वितीय देवलोक के इन्द्र) तथा उसके लोकपालों की अग्रमहिषियों आदि का वर्णन पूर्वसूत्र का अतिदेश करके किया गया है / चूँकि वैमानिक देवों में केवल पहले और दूसरे देवलोक तक ही देवियाँ उत्पन्न होती हैं / इसलिए यहाँ प्रथम और द्वितीय देवलोक के इन्द्रों और उनके लोकपालों की अग्रमहिषयों का वर्णन किया गया है / ' // दशम शतक: पंचम उद्देशक समाप्त / / - - - ---- 1. भगवती. विवेचन (6. घेवरचन्दजी), भा. 4, पृ. 1831 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org