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________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [507 (5) कर्मों के उदय से, (6) विपाक से (यानी कर्मों के फलभोग) से, अथवा यथाबद्ध रसानुभूति से, फलविपाक से-रस की प्रकर्षता से / ' उपर्युक्त शब्दों में किञ्चित् अर्थभेद है अथवा ये शब्द एकार्थक हैं / अर्थ के प्रकर्ष को बतलाने के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग किया गया है / भगवान के सर्वज्ञत्व पर श्रद्धा और पंचमहावत धर्म स्वीकार--- 58. तप्पभिई च णं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं पच्चभिजाणइ सवण्ण सव्वदरिसी। 58] तब से अर्थात इन प्रश्नोत्तरों के समय से गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को सर्वज्ञ और सर्वदर्शी के रूप में पहचाना / 56. तए णं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-इच्छामि णं भो! तुभ अंतियं चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहब्बइयं एवं जहा कालासवेसिययुत्तो (स० 1 उ० 9 सु० 23-24) तहेव भाणियब्वं जाव सव्वदुक्खप्पहीणे / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० / // गंगेयो समत्तो // 9. 32 // [56] इसके पश्चात् गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, वन्दन नमस्कार किया। उसके बाद इस प्रकार निवेदन किया-- ___ भगवन् ! मैं आपके पास चातुर्यामरूप धर्म से (-धर्म के बदले) पंचमहाव्रतरूप धर्म को अंगीकार करना चाहता हूं। इस प्रकार सारा वर्णन प्रथम शतक के नौवें उद्देशक में कथित कालास्यवेषिकपुत्र अनगार के समान जानना चाहिए। यावत् गांगेय अनगार सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत सर्वदुःखों से रहित बने / हे भगवन् यह इसी प्रकार है ! हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! विवेचन भगवान के सर्वज्ञत्व पर श्रद्धा और पंचमहायत धर्म का स्वीकार प्रस्तुत दो सूत्रों (58-56) में यह प्रतिपादन किया गया है कि जब गांगेय अनगार को भगवान के सर्वज्ञत्व एवं सर्वदर्शित्व पर विश्वास हो गया, तब उन्होंने भगवान से चातुर्यामधर्म के स्थान पर पंचमहाव्रतरूप धर्म स्वीकार किया और क्रमश: सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। / नवम शतकः बत्तीसवाँ उद्देशक समाप्त / / 03 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 455 2. वही, अ वृत्ति, पत्र 455 3. भगवतीसूत्र श. 1, उ. 9, सू. 23-24 में देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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