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________________ 488] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अथवा एक रत्नप्रभा में, दो वालुकाप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं / इसी प्रकार इसी क्रम से त्रिकसंयोगी, चतुष्कसंयोगी, यावत् सप्तसंयोगी भंगों का कथन, दस नैरयिकसम्बन्धी भंगों के समान करना चाहिए / अन्तिम भंग (मालापक) जो सप्तमयोगी है, यह है--अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में यावत् संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। विवेचन -संख्यात का स्वरूप -प्रागमिक परिभाषानुसार यहाँ ग्यारह से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक की संख्या को संख्यात कहा गय __असंयोगो 7 भंग-प्रत्येक नरक के साथ संख्यात का संयोग होने से असंयोगी या एकसंयोगी 7 भंग होते हैं। द्विकसंयोगी 231 भंग-द्विकसंयोगी में संख्यात के दो विभाग किये गए हैं, इसलिए एक और संख्यात, दो और संख्यात, यावत् दस और संख्यात तथा संख्यात और संख्यात इस प्रकार एक विकल्प के 11 भंग होते हैं। ये विकल्प रत्नप्रभादि पृथ्वियों के साथ आगे की पृथ्वियों का संयोग करने पर एक से लेकर संख्यात तक ग्यारह पदों का संयोग करने से और शर्कराप्रभादि पृथ्वियों के साथ केवल 'संख्यात' पद का संयोग करने से बनते हैं। रत्नप्रभादि पूर्व-पूर्व की प्रश्चियों के साथ संख्यात पद का संयोग और मागे-आगे की पृथ्वियों के साथ एकादि पदों का संयोग करने से जो भंग होते हैं, उनकी विवक्षा यहाँ नहीं की गई है / अर्थात् एक रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं, तथा एक रत्नप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं / यही क्रम यहां अभीप्ट है, न कि संख्यात रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होते हैं, संख्यात रत्नप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होते हैं, इत्यादि ऋम से भंग करना अभीष्ट नहीं है / पूर्वसूत्रों में भी यही क्रम ग्रहण किया गया है। यहाँ भी पहले को नरकपृथ्वियों के साथ एकादि संख्या का और आगे-आगे की नरकपृथ्वियों के साथ संख्यात राशि का संयोग करना चाहिए / इसमें आगे-मागे की नरकवियों के साथ वाली संख्यात राशि में से एकादि संख्या को कम करने पर भी संख्याता राशि की संख्यातता कायम रहती है। इनमें से रत्नप्रभा के एक से लेकर संख्यात तक 11 पदों का और शेष प्रवियों के सा से 'संख्यात पद का संयोग करने से 66 भग होते हैं / शर्कराप्रभा का शेष नरकपृथ्वियों के साथ संयोग करने से 5 विकल्प होते हैं। उन 5 विकल्पों को एकादि ग्यारह पदों से गुणा करने पर शर्कराप्रभा के संयोग वाले कुल 55 भंग होते हैं / इसी प्रकार बालुकाप्रभा के संयोगवाले 44 भंग. पंकप्रभा के संयोग बाले 33 भंग, धूमप्रभा के संयोग वाले 22 भंग और तमःप्रभा के संयोगवाले 11 भग होते हैं / ये सभी मिलकर द्विकसंयोगी 66+55+44+33+22+ 11 = 231 भंग होते हैं / त्रिकसंयोगी 735 भंग--त्रिकसंयोगी में 21 विकल्प होते हैं / यथा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, और संख्यात बालुकाप्रभा में, यह प्रथम विकल्प है / अब पहली नरक में 1 जीव और तीसरी नरक में संख्यात जीव, इस पद को कायम रखकर दूसरी नरक में अनुक्रम से संख्या का विन्यास किया जाता है। अर्थात-दो से लेकर दस तक की संख्या का तथा 'संख्यात' पद का याग करने से कुल 11 भंग होते हैं / तथा इसके बाद दूसरी और तीसरी पृथ्वी में संख्यात पद को कायम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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